संचालक डॉ. चौहान ने बताया कि सीएमएचओ डॉ. जेएस गोगिया तथा लेखापाल भारती तिकाड़े को उक्त मामले में अपना पक्ष रखने के लिए भोपाल बुलाया था, लेकिन वे विभागीय निर्देश का पालन प्रतिवेदन लेकर नहीं पहुंचे थे। उल्लेखनीय है कि जिले की शासकीय चिकित्सा संस्थाओं में विगत वर्ष किए गए डेढ़ करोड़ के रंग-रोगन तथा मरम्मत की भोपाल से आई ऑडिट की टीम को बिल-बाउचर प्रस्तुत नहीं करने पर आपत्ति लगा दी गई थी। वहीं मामले को दबाने दोनों विभाग के अधिकारी एक-दूसरे पर पैसों की मांग करने का आरोप लगा रहे थे। इसके कारण छिंदवाड़ा से लेकर भोपाल तक बवाल मच गया था।
ठेकेदार को पहुंचाया गया लाभ
लीपापोती मामले में चिकित्सा अधिकारियों तथा कर्मचारियों की सांठगांठ से दवा की आपूर्ति करने वाले ठेकेदार को सिविल कार्य सौंपा गया। इसके लिए ठेकेदार द्वारा अधिकारियों को नजराना भी दिया गया तथा इसी वजह से रंगरोगन और अन्य सिविल कार्यों की सिविल इंजीनियर से सत्यापन नहीं कराया गया। इधर, विभागीय लोगों में चर्चा है कि ठेकेदार से नजराना लेना अब अधिकारियों के लिए भारी पड़ रहा है।