जानकारी के अनुसार कई माह से जिला अस्पताल की लैब में डेंगू प्रोटोकॉल के तहत जांच नहीं हो रही है। मशीनें खराब पड़ी हैं, लेकिन मरम्मत के लिए कोई भी गम्भीर नहीं है। जिला मलेरिया विभाग द्वारा विगत दिनों मलेरिया-डेंगू माह मनाया गया, लेकिन इस दौरान कोई भी मरीज सामने नहीं आया जबकि जबकि विगत वर्ष में जनवरी से सितम्बर तक आठ डेंगू पॉजिटिव मरीज सामने आ चुके थे। जिला मलेरिया अधिकारी देवेंद्र भालेकर ने बताया कि शासन के निर्देशासनुसार एलाइजा टेस्ट में पॉजिटिव आने पर ही डेंगू होने की पुष्टि मानी जाती है। जबकि नागपुर या अन्य स्थानों पर किट टेस्ट में पॉजिटिव को ही मान्य कर लिया जाता है।
शुरू नहीं हो सकी बायोकैमिस्ट्री
डेंगू या मलेरिया संदिग्ध मरीज के आने पर चिकित्सा विशेषज्ञ ब्लड की आवश्यक जांच कराने के लिए लिखते हैं। इसके बाद ही एलाइजा टेस्ट किया जाता है। विभागीय अधिकारियों का दावा है कि जिला अस्पताल में उक्त जांच की जा रही है। जबकि हकीकत में विगत कई माह से बायोकैमिस्ट्री समेत अन्य जांच बंद पड़ी है।
इन लक्षणों से पहचाने रोग
डेंगू संदिग्ध मरीज को काफी तेज बुखार रहता है। शरीर तथा सिर में अत्याधिक दर्द रहता है। डेंगू बुखार तीन तरह के होते है। इसमें पहला क्लासिकल, इसमें साधारण डेंगू, हैमरेजिक बुखार, इसमें डीएचफ तथा तीसरा डेंगू शॉक सिंड्रोम, इसमें डीएसएस शामिल है। डेंगू की तीव्रता बच्चों में ज्यादा रहती है। जोड़ों और हड्डी में तेज दर्द की वजह से इसे हड्डीतोड़ बुखार भी कहा जाता है।
एेसे करें बचाव
मलेरिया अथवा डेंगू रोग से बचने के लिए मच्छरदानी का उपयोग करना चाहिए। हर सप्ताह पानी की टंकियों की सफाई करना चाहिए। घरों में साफ-सफाई बनाए रखना तथा समय-समय पर चिकित्सकों से उचित सलाह लेना आवश्यक है।