सोयाबीन एक समय खरीफ में पूरे जिले की मुख्य फसल बन गया था। छिंदवाड़ा, मोहखेड़, चौरई, बिछुआ के साथ संतरांचल के पांढुर्ना और सौंसर में भी इसका खासा उत्पादन होता था। 2011-12 के दौरान तो इसका रकबा दो लाख हैक्टेयर तक पहुंच गया था। इसके बाद अचानक इस फसल पर एक स्वाईलवर्म वाइरस यलो मोजेक का आक्रमण हुआ। यह वायरस मिट्टी में फैलकर फसल को नष्ट करता था। हालात ये हुए कि फसल के साथ खेती की जमीन से भी वायरस ने पोषक तत्व खत्म कर दिए। हालात ये हुए कि सोयाबीन से किसानों ने तौबा कर ली। लगातार घटते उत्पादन के कारण वर्तमान में इसका रकबा 18 हजार हैक्टेयर तक उतर गया।
अरहर का रकबा भी बढ़ेगा
जिले में अरहर की तरफ रुझान बढ़ा है। पिछले तीन चार साल से इसके अच्छे उत्पादन के कारण किसान जहां इस दलहन की फसल को लेने में रुचि दिखा रहे हैं तो विभाग भी रकबा बढ़ाने के साथ इसके अच्छे बीज किसानों को देने की कोशिश में लगा है ताकि दलहन की इस मुख्य फसल को भी जिले में स्थापित किया जाए। पिछले खरीफ के सीजन में 38 हजार हैक्टेयर में तुअर जिले में लगाई गई थी। इस बार 40 हजार हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में लगाने प्रेरित किया जा रहा है।
दो से तीन फसल लें किसान
खरीफ के इस सीजन में कृषि विभाग किसानों से दो से तीन फसल लेने की समझाइश दे रहा है। किसान कल्याण और कृषि विकास विभाग के उपसंचालक जेआर हेडाऊ ने बताया कि हम किसानों को दो या तीन फसलें लेने कह रहें हैं। उदाहरण के तौर पर यदि किसान के पास तीन एकड़ जमीन है तो दो एकड़ में वह मुख्य फसल ले। बाकी आधे-आधे एकड़ में दो अन्य खरीफ फसले लें। इसमें एक दलहन फसल जरूर रखे। इससे ये होगा कि किसी फसल में यदि बीमारी लगी तो वह सीमित क्षेत्र में रहेगी। दूसरी लगी फसल उस कीट से बची रहेगी और किसान को नुकसान की आशंका कम रहेगी। उपसंचालक ने बताया कि दलहन की फसल किसान जरूर लें इससे जमीन की उर्वरता बनी रहती है।