पुलिस मुख्यालय भोपाल से आए दिन स्मार्ट पुलिसिंग के आदेश जारी होते हैं। पुलिस को आधुनिक बनाने पर कई सालों से पूरा जोर दिया जा रहा है। तमाम सेमिनार और जागरुकता के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, लेकिन मूल जरूरतों को पूरा करने पर किसी का ध्यान नहीं है। आधुनिक दौर में लोग बाइक से ज्यादा कार का इस्तेमाल करना पसंद कर रहे हैं और कार के इस जमाने में पुलिसवालों को साइकिल का भत्ता 18 रुपए दिया जा रहा है। ऐसे में साइकिल के भरोसे किस तरह स्मार्ट पुलिसिंग की जा सकती है। किसी अपराधी का पीछा कर उसे पकडऩे की बात आए तो क्या साइकिल से यह संभव हो पाएगा। अपराधियों की धरपकड़ के लिए पुलिस क्या साइकिल से जाएगी। इस तरह की तमाम विसंगतियों पर अभी तक किसी ने भी ध्यान नहीं दिया है। नौकरी करने के लिए प्रत्येक पुलिसकर्मी अपनी बाइक में अपने जेब के पैसों से पेट्रोल भरवाते हैं, लेकिन भत्ता आज भी साइकिल का ही लेना पड़ रहा है। इस मामले को लेकर पुलिसकर्मियों का कहना है कि हम वर्दी की गरिमा को ध्यान में रखते हुए कुछ दायरों में बंधे हुए हैं। अन्य विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों की तरह हड़ताल और नारेबाजी नहीं कर सकते। मप्र सरकार को भी राजस्थान सरकार की तरह ही पुलिसकर्मियों के बारे में सोचना चाहिए।
बाइक का पंचर नहीं जुड़ता
पुलिसकर्मियों को आज के दौर में साइकिल का जितना भत्ता मिल रहा है, उससे बाइक का पंचर भी नहीं बनता है। बाइक का पंचर जुड़वाने के भी लगभग 50 से 60 रुपए लगते हैं। ट्यूब और टायर बदलने की बात आ जाए तो उसमें कुछ राशि और लगाकर साइकिल ही खरीदी जा सकती है। मिलने वाले भत्ते से बाइक में पेट्रोल भरवाना तो बहुत दूर की बात हो चुकी है।