इसके बाद मरीज की वास्तविक रिपोर्ट खंगाली गई तो हकीकत सामने आने पर विभाग में हल्लामच गया तथा स्वास्थ्य कर्मियों ने मरीज के एटेंडर और सिवनी अस्पताल के जिम्मेदारों को फोन पर फटकार भी लगा दी। इतना ही नहीं उक्त लापरवाही की शिकायत सिवनी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी तथा सिविल सर्जन को भी कर दी।
मिली जानकारी के अनुसार एचआइवी पीडि़त मरीज को रैफर करते समय पर्ची पर (यूपी) यूनिवर्सल प्रोकॉशन कोड लिखा जाता है, जिससे संबंधित मरीज की पहचान नहीं हो पाती तथा उपचार के दौरान सावधानी बरती जाती है।
यह है मामला – एड्स रोग से पीडि़त गर्भवती को सोमवार रात करीब 10.45 छिंदवाड़ा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस रैफर किया गया। यहां पहुचते ही करीब दस मिनट के भीतर गर्भवती की सामान्य डिलेवरी हो गई। बताया जाता है कि मरीज के पहुंचने में थोड़ा भी समय लगता तो डिलेवरी एंबुलेंस में ही हो जाती तथा इसमें असुरक्षा बरतने पर संबंधितों के स्वास्थ्य का खतरा बढ़ जाता।
वहीं मरीज के परिजनों ने मामले को छिपाया तथा हाई बीपी होने की झूठी कहानी रची। बताया जाता है कि संबंधित महिला का बालाघाट में एचआइवी का पहले से उपचार चल रहा था।
पहले भी आ चुका है मामला –
जिला अस्पताल में एचआइवी मरीज का बिना प्रोटोकॉल का पालन किए सर्जरी करने का हाल ही में मामला प्रकाश में आ चुका है, जिसमें मंगलवार को भी कुछ डॉक्टरों के बयान एसडीएम कार्यालय छिंदवाड़ा में दर्ज किए गए है। उक्त घटना के बाद स्थानीय स्वास्थ्य अमला हर सर्जरी में सावधानी बरत रहा है। लेकिन सिवनी से आए प्रकरण में कर्मचारियों को आवश्यक परीक्षण करने का मौका नहीं मिला। स्थिति यह रही कि डिलेवरी के बाद दस्तावेजी कार्रवाई करनी पड़ी।
जिम्मेदारों की दी जाएगी समझाइश – सामान्य प्रसव की स्थिति में भी मरीज को रैफर नहीं किया जाना चाहिए था तथा एड्स के मरीजों को रैफर करते समय दस्तावेजी कार्रवाई में बरती गई लापरवाही के लिए जिम्मेदार डॉक्टर और स्टाफ को दोबारा ऐसी गलती नहीं करने की हिदायत दी जाएगी।
– डॉ. विनोद नवकर, सिविल सर्जन सिवनी हर प्रकरण में बरती जाती है सावधानी – कई मामलों में मरीज आवश्यक सूचनाओं को छिपाने का प्रयास करता है, इसलिए सर्जरी सहित अन्य प्रकरणों में आवश्यक सावधानी पहले से ही बरती जाती है।
डॉ. सुशील दुबे, आरएमओ छिंदवाड़ा