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छिंदवाड़ा

कमलनाथ ने दान में थी मशीन, मेडिकल कॉलेज में ये हाल हो गए..जानिए

इंदौर के डॉक्टर के रिपोर्टिंग छोड़ते ही एमआरआई मशीन का संचालन बंद

छिंदवाड़ाJan 21, 2022 / 09:37 pm

manohar soni

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छिंदवाड़ा.मेडिकल कॉलेज के अधीन जिला अस्पताल में लगी एमआरआई मशीन का संचालन एक बार फिर बंद हो गया है। इंदौर के निजी डॉक्टर द्वारा रिपोर्टिंग की सेवाएं छोड़ते ही यह स्थिति बनी है। कॉलेज प्रबंधन इसका वैकल्पिक इंतजाम नहीं कर पाया है। आउटसोर्सिंग एजेंसी को दिए जाने पर भी विचार नहीं किया है।
आम तौर पर एमआरआई स्कैन का इस्तेमाल मस्तिष्क, हड्डियों व मांसपेशियों, सॉफ्ट टिश्यू, चेस्ट, ट्यूमर-कैंसर, स्ट्रोक, डिमेंशिया, माइग्रेन, धमनियों के ब्लॉकेज और जेनेटिक डिस्ऑर्डर का पता लगाने में होता है। बीमारी की सटीक जानकारी के लिए यह जांच होती है। मेडिकल कॉलेज में यह सुविधा उपलब्ध न होने पर पूर्व सीएम कमलनाथ ने अपने ट्रस्ट से करीब 6 करोड़ रुपए की यह मशीन बुलाकर दान में दी थी लेकिन कॉलेज प्रबंधन इस मशीन का प्रबंधन शुरुआत से ही संभाल नहीं पाया। बमुश्किल एक्स-रे ऑपरेटर से मशीन का संचालन प्रारंभ कराया। फिर इंदौर के निजी चिकित्सक डॉ.दीपेन्द्र वर्मा से इसकी रिपोर्टिंग करानी शुरू की। जैसे-तैसे यह व्यवस्था चल रही थी कि आपसी सामंजस्य के अभाव में डॉ.वर्मा ने रिपोर्टिंग छोड़ दी। इससे मशीन का संचालन फिर बंद हो गया। डॉ.वर्मा के स्थान पर अभी तक किसी की नियुक्ति नहीं की गई है।

डीन ने डॉक्टर को दिए थे ट्रेनिंग के आदेश
एमआरआई मशीन का संचालन छिंदवाड़ा में हमेशा सिरदर्द रहा है। मेडिकल कॉलेज डीन ने पिछले साल 2021 में भी डॉ. शिपिंग जैन को जबलपुर मेडिकल कॉलेज की ट्रेनिंग के आदेश किए थे। वह नहीं जा सकी। इस बार भी 2022 में ये आदेश किए गए हैं। फिर भी डॉ.जैन जबलपुर पहुंची या नहीं, इसके बारे में कोई सूचना नहीं दे पा रहा है।

डॉक्टर सीधे लिख रहे एमआरआई, नागपुर में लगते हैं दस हजार
बताया जाता है कि अस्थि रोग से जुड़े डॉक्टर मरीजों को सीधे एमआरआई जांच के लिए लिख देते हैं। अस्पताल में यह होती नहीं तो मजबूरी में उन्हें नागपुर जाना पड़ता है। इस जांच समेत इलाज के खर्च में दस हजार रुपए लग जाते हैं। इसके चलते सीएम हेल्पलाइन में मेडिकल कॉलेज के विरूद्ध शिकायतें लग रही है।
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जनप्रतिनिधि न अफसर कभी नहीं लेते सुधि
सत्तारूढ़ दल हो या विपक्षी जनप्रतिनिधि कभी इस संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा नहीं करते। यहीं हाल अफसरों का है। कोई भी मेडिकल कॉलेज डीन डॉ.जीबी रामटेके से यह पूछने को तैयार नहीं है कि एमआरआई मशीन बंद क्यों पड़ी है। इसका वैकल्पिक इंतजाम क्या किए गए हैं। यह उदासीनता मरीजों की जेब पर भारी पड़ रही है। इस मशीन को सिटी स्केन, हीमो डायलिसिस मशीन की तरह आउटसोर्सिंग पर देने का सुझाव भी आया था लेकिन डीन ने इस पर निर्णय नहीं लिया है। इस बारे में कोई भी संवाद करने के लिए डॉ.रामटेके हमेशा मोबाइल से परहेज करते हैं।

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