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छिंदवाड़ा

साहित्यकारों ने किया रचना पाठ, पढ़ें पूरी खबर

विष्णु खरे स्मृति समारोह का दूसरा दिन

छिंदवाड़ाFeb 20, 2020 / 12:54 pm

Rajendra Sharma

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छिंदवाड़ा/ साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद भोपाल एवं स्थानीय जिला प्रशासन के सहयोग से स्व. विष्णु खरे की स्मृति में सांप्रदायिकता के विरुद्ध साहित्य के अंतर्गत दो दिवसीय विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। दूसरे दिन बुधवार को शासकीय राजमाता सिंधिया गल्र्स कॉलेज के ऑडिटोरियम में साहित्यकारों ने रचना पाठ किया।
कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार सुधीर सक्सेना, अशोक मिश्र, रवीन्द्र त्रिपाठी, मनीष गुप्ता समेत अन्य साहित्यकार, गणमान्य नागरिक और साहित्य प्रेमी श्रोता उपस्थित थे। संचालन भोपाल के वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र शर्मा ने किया। रचना पाठ में गाजियाबाद के विमल कुमार ने यह चांद मुझे दे दो, बच्चे जब मर रहे थे, एक गधे की उत्तर कथा और अन्य रचनाएं प्रस्तुत की। इसके अलावा वरिष्ठ साहित्यकार मोहन डेहरिया, राजेश झरपुरे, हेमेन्द्र कुमार राय, युवा कवि अनिल करमेले काव्य पाठ किया। साहित्य अकादमी के निदेशक ने अकादमी की गतिविधियों व आगामी कार्यक्रमों के संबंध में जानकारी देने के साथ सभी का आभार व्यक्त किया।
एक टोपी तुम्हारे सारे दुष्कर्मो को ढक सकती है

रचना पाठ कार्यक्रम में गाजियाबाद के विमल कुमार ने यह चांद मुझे दे दो, बच्चे जब मर रहे थे, एक गधे की उत्तर कथा और अन्य रचनायें प्रस्तुत की । उन्होंने पढ़ा कि ‘है इतना अंधेरा यहां/कि थोड़ी रोशनी के लिये/यह चांद मुझे दे दो’ । वरिष्ठ साहित्यकार मोहन डेहरिया ने नाचना, कौन गा रहा है यह गीत व मुझे दे दो कवितायें पढ़ी । उन्होंने पढ़ा कि ‘नाचना भी एक उपाय है/पापियों के लिये/अपनी आत्मा की कुबड़ से छुटकारा के लिये/एक सच्चा और गहरा नाच ही कर सकता है/मनुष्यों का ईश्वर से साक्षात्कार’ । वरिष्ठ साहित्यकार राजेश झरपुरे ने टोपी, वे बुरे नहीं है, सफल आदमी, हनीफ भाई लड़ाई अभी बाकी है आदि रचनायें पढ़ीं। उन्होंने पढ़ा कि ‘एक टोपी तुम्हारे सारे दुष्कर्मो को ढक सकती है/एक टोपी तुम्हारे सारे दोषों को प्रकट कर सकती है/एक टोपी तुम्हारे खिलाफ दुश्मनों को बुला सकती है/अब फैसला आपका है/आप सिर बचाना चाहेंगे या टोपी’ । वरिष्ठ साहित्यकार हेमेन्द्र कुमार राय ने बिना छत के घर के बारे में, कल्पवृक्ष, जिसे वह अपना घर कहती है, उस बरस आदि कवितायें पढ़ी । उन्होंने पढ़ा कि ‘क्यों नहीं किया उसने कभी अपना कायाकल्प/किसी दिन मिलने पर पूछूंगा उससे/उसका दु:ख’ । युवा कवि अनिल करमेले ने टेलीग्राम, गोरे रंग का मर्सिया, पहला प्रेम, मै इस तरह रहूं, यह धरती के आराम करने का समय है, चाह आदि कवितायें पढ़ीं । उन्होंने पढ़ा कि ‘मैं इस तरह रहूं/जैसे बची रहती है आखिरी उम्मीद/मैं स्वाद की तरह रहूं/लोगों की यादों में/रहूं जरूरत बनकर नमक की तरह/मैं गर्भ की तरह रहूं/ और पूरी दुनिया रहे मेरे आसपास/मां की तरह’ ।

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