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छिंदवाड़ा

तमाम योजनाओं के बाद झोपड़ी में रहने को मजबूर मां-बेटी

तमाम दावों के बाद भी शासकीय योजनाओं का लाभ पात्र लोगों को नहीं मिल पा रहा है।

छिंदवाड़ाDec 02, 2017 / 12:40 am

sanjay daldale

live in a cottage

झाडियों के सहारे बनाई झोपडी में रहने को मजबूर है।

परासिया। तमाम दावों के बाद भी शासकीय योजनाओं का लाभ पात्र लोगों को नहीं मिल पा रहा है, मैदानी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। ग्राम पंचायत खैरीचैतू में आबादी से दूर जंगल के पास पिछले दो वर्ष से राजकुमारी अपनी दो बच्चियों के साथ घास और झाडियों के सहारे बनाई झोपडी में रहने को मजबूर है।
राजकुमारी का विवाह हरनभटा निवासी रामस्वरूप के साथ हुआ था, पति ने दो वर्ष पूर्व उसे बच्चों सहित घर से बाहर कर दिया। राजकुमारी अपनी दो बेटियों और पुत्र के साथ मायके आई लेकिन कुछ दिनों के बाद उन लोगो ने भी उसे अलग कर दिया। राजकुमारी कहती है कि कहीं ठौर नहीं मिलने पर आबादी से दूर उसने बच्चों के साथ घास और झाडियों की सहायता से झोपड़ी बनाई है। पिछली बारिश में बरसाती ओढकर रात बितानी पड़ी थी। राजकुमारी खेतों में मजदूरी करके कक्षा पांचवी में अध्ययनरत आरती और हरिदास को पढ़ा रही है। 13 वर्षीय काजल कहती है कि पास में जंगल होने से हमेशा भय लगा रहता है, लाइट नहीं होने के कारण शाम होते ही अंधेरा छा जाता है। झोपडी का एक कमरा ही उनका रसोई घर, स्नान घर है।
ग्राम पंचायत से नहीं मिलती है मदद
राजकुमारी कहती है कि ग्राम पंचायत खैरीचैतू वाले कहते है कि पहले हरनभटा से नाम कटाकर लाओ इसके बाद यहां नाम जोडेंग़े फिर कोई काम होगा। वहीं हरनभटा पंचायत में कहते है कि तुम खैरीचैतू में रहने लगी हो वहां से लिखाकर लाओ तब नाम काटेंगे। इसी जद्दोजहद में राजकुमारी दो वर्षों से भटक रही है। सबसे अधिक परेशानी उसके बच्चों को स्कूल में उठानी पड़ रही है कोई प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है।
राजकुमारी इसके पहले हरनभटा पंचायत की निवासी थी वहां से नाम कटने के बाद ही खैरीचैतू में नाम जुड़ पाएगा। जब तक यहां की विधिवत निवासी नहीं बनेगी उसको कोई योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा।
दिलीप डेहरिया, प्रभारी संचिव

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