सबसे पहले १९५७ के विधानसभा चुनाव में रायचंद भाई शाह 1200 से कुछ ज्यादा वोटों से जीते थे। वे इकलौते गैर कुनबी विधायक रहे हैं इस सीट से। कांग्रेस और भाजपा ने यहां से इसी समाज के प्रत्याशियों को तवज्जो दी। १९९० में कांग्रेस ने पारसचंद राय को मौका दिया। यह कुनबी समाज के नहीं थे। मतदाताओं ने उन्हें हरा दिया। यहां से भाजपा के रामराव महाले ने उन्हें हराया। इस सीट पर बसपा, जनता दल, आरपीआई और गोंडवाना का भी कुछ असर समय -समय पर दिखा है और ये दल जोर आजमाइश करते दिखे हैं, लेकिन वे भाजपा और कांगे्रस का गढ़ भेदने में सफल नहीं हो पाए। हालांकि उनका वोट प्रतिशत बढ़ा है। इस बार कांग्रेस के विजय चौरे और नाना मोहोड़ दोनों कुनबी समाज से हैं। देखना है कि इस बार समाज और क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कौन करता है।
नाना लगातार तीन बार जीत दर्ज कर हैट्रिक बना चुके हें। वे चौथी बार जीतते हैं तो एेसा करने वाले जिले के तीसरे नेता बनेंगे। विजय चौरे अपने परिवार के चौथे सदस्य हैं जो विधायक बनने की कोशिश करेंगे। इससे पहले उनके पिता रेवनाथ चौरे, माता कमला चौरे और भाई अजय चौरे यहां से विधायक रह चुके हैं।
उम्मीदवारों चयन और उनकी जीत को देखें तो इस विधानसा सीट पर पांच बार रिधोरा क्षेत्र के निवासी विधायक रहे हैं जबकि दो विधायक रंगारी से बने। नाना भाउ मांगुरली के रहने वाले हैं। चौरे परिवार रिधोरा केनिवासी है। रंगारी से रामराव महाले और विट्ठल महाले ने विधासभा में प्रतिनिधित्व किया है।