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छिंदवाड़ा

एक रास्ता आजादी के बाद भी नहीं बदला

आज भी ग्रामीण अंचल शासन की योजनाओं से अछूते है। ग्रामीण आज भी मूलभूत आवश्यकताएं बिजली, पानी और सड़क की कमियों से जूझ रहे है ।

छिंदवाड़ाNov 25, 2017 / 12:56 am

sanjay daldale

No way to change

खजरी से नौलाखापा का यह मार्ग पूर्णत: खस्ताहाल

खैरवानी/जुन्नारदेव. आज भी ग्रामीण अंचल शासन की योजनाओं से अछूते है। ग्रामीण आज भी मूलभूत आवश्यकताएं बिजली, पानी और सड़क की कमियों से जूझ रहे है। इसी प्रकार का नजारा जुन्नारदेव विकासखंड की ग्राम पंचायत बुधवारा के ग्राम खजरी से नौलाखापा के बीच में देखने को मिल रहा है। जहां लगभग 8 किमी लम्बा मार्ग जहां पर दो बड़े नाले है जिसकी आज तक शासन-प्रशासन ने सुध नहीं ली है। वहीं शासन, प्रशासन और जनप्रतिनिधि विभिन्न योजनाओं की डिंगे हाक रहे है हो लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। वर्तमान में शासन की प्रधानमंत्री सड़क योजना, मुख्यमंत्री योजना की हकीकत भी उजागर होती जा रही है।
ग्रामवासी सड़क की मांग कर रहे है किन्तु शासन प्रशासन 70 साल बीत जाने के बाद भी नहीं जागा है। आजादी के बाद से ही यह सड़क कांग्रेस और भाजपा सरकार की योजनाओं का माखौल उड़ा रही है। ग्रामीण आज भी सड़क बनने की बाटजोह रहे हैं।
मार्ग में पड़ते हैं दो बड़े नाले: खजरी से नौलाखापा का यह मार्ग पूर्णत: खस्ताहाल होने के साथ-साथ इस मार्ग पर दो बरसाती नाले भी पड़ते है। बारिश में यह मार्ग पूरी बंद हो जाता है और सड़क कीचड़ और गड्ढों से सनी होती है। बारिश में ग्रामीणों को 15 किमी घूमकर खैरवानी-हनोतिया मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है।
शासन की योजनाओं का उड़ रहा माखौल

ग्रामीण अंचल में आजादी के बाद से अब तक ग्रामों को जोडऩे के लिए सड़क का निर्माण कार्य न किया जाना शासन-प्रशासन की योजनाओं का खुला माखौल उड़ा रहा है। वहीं अब ग्रामीण भी सड़क की खास खो बैठे है। उनका कहना है कि सरकार कुछ नहीं करती अब तो हमें तो ऐसे ही हमेशा आवागमन करना पड़ेगा।
मार्ग पर हो चुके हंै कई हादसे

खजरी से नौलाखापा का यह मार्ग इतना खतरनाक हो गया है कि अब यह सड़क दुपहिया वाहन चालकों के काल का गाल बनता जा रहा है। वहीं गरीब ग्रामीण और किसान समय, दूरी और पैसे की बचत करने के लिए इस खतरनाक से अपनी जान जोखिम में डालकर गुजर रहे है। वहीं इन्हें रोकने-टोकने वाला भी कोई नहीं है। विगत 15 वर्ष पूर्व राहत कार्य के नाम पर मुरम डाली गई थी किन्तु मुरम भी नाकाफी साबित हुई और इससे भी मार्ग में कोई सुधार नहीं आया। 8 किमी लंबे खस्ताहाल मार्ग के लिए विगत वर्ष में विधायक ने महज तीन हजार रूपए की राशि प्रदान की गई थी जो कि ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुई। अब देखना यह है कि आगामी समय में विधानसभा चुनाव के पूर्व क्या राजनेताओं की आंखे खुलती है और इस सड़क निर्माण को स्वीकृति दिलाने में वे कामयाब होते है या फिर ग्रामीण इस मार्ग से इसी तरह अपनी जान जोखिम में डालकर आवागमन करते रहेंगे।
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