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छिंदवाड़ा

प्रेम-मोहब्बत के साथ भाईचार, सौहार्द की कविताओं से किया मंत्रमुग्ध

पाठक मंच की काव्य गोष्ठी

छिंदवाड़ाNov 22, 2019 / 12:39 pm

chandrashekhar sakarwar

प्रेम-मोहब्बत के साथ भाईचार, सौहार्द की कविताओं से किया मंत्रमुग्ध

प्रेम-मोहब्बत के साथ भाईचार, सौहार्द की कविताओं से किया मंत्रमुग्ध



छिंदवाड़ा / साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश शासन भोपाल की इकाई पाठक मंच ने गत दिवस काव्य गोष्ठी आयोजित की। वरिष्ठ साहित्यकार केशव प्रसाद तिवारी के निवास पर दीप भव के नाम से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव ने की।
कार्यक्रम का शुभारम्भ मोहिता जगदेव ने सरस्वती वंदना से किया। कवि श्रीकांत सराठे ने मां की ममता को कविता के माध्यम से सांझा किया। शशांक पारसे ने एक कविता के जन्म को कविता से चित्रित करते हुए वाहवाही लूटी। कविता से गजल की ओर ले जाते हुए शिवराम विश्वकर्मा ने पढ़ा कि- देखने जब भी ताज महल जाओगे, शाह आगोश में मुमताज महल पाओगे, खुशनुमा जज्बात दिल में उभर आएंगे, फिर उजाला की तरह मीठी गज़ल गाओगे। नवोदित कवयित्री माधुरी बेंडे ने प्रेम और मोहब्बत को गजलों में इश्क इबादत बना दिया। मोहित मुकेश जगदेव ने व्यंग का तेवर दिखाया-पहली दिवाली नेताओं ने मनाया, बने खुद लक्ष्मी, उल्लू जनता को बनाया। कवि रत्नाकर रतन ने सर्वधर्म सद्भाव के सूत्र को गज़लों से व्यक्त किया-ईद दिवाली इंसा में भाइचारा हो, आओ इस शेर से मतले चलो उठाते हंै, नजर मिलाके रतन नींद वो चुराते हैं, वो मेरे ख्यालों में चुपके से चले आते हैं। कविता को अन्ताक्षरी की तरह नए रंग में प्रस्तुत करते हुए कवि विशाल शुक्ल ने अचंभित कर दिया-जग मग करता दीप, बूंद के नीचे सीप, सीप में लहराता सागर जैसे नटवर नागर, नागर और हम, प्रकाश व तम, तम मांगे प्रकाश, तंत्र से जन आस। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि ओम प्रकाश नयन ने अपनी नई कविता से गोष्ठि को ऊंचाइयां दीं-कीड़े मकोड़े, जानवर और आदमी, दुश्मन दौड़ता है रगों में, देसी ठर्रा, विदेशी रम, सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू आदि बनकर और सौंप देता है एक साथ, कैंसर, क्षय, एड्स इबोला जैसी कई सौगातें।
केशव प्रसाद तिवारी ने हाल ही में अयोध्या फैसले पर प्रस्तुत हिंदी गज़़ल चर्चित को सराहना मिली-अवधपुरी सूनी पड़ी, गए राम वनवास, एक दिन वापस आएंगे यही आस विश्वास, भरत रहे भारत रहे यही करें विश्राम, मंदिर बनना है वहीं, जन्मे जहां श्रीराम। डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्तव ने भगवान बुद्ध के सूत्र वाक्य अप्प दीप भव की प्रासंगिकता पर ना सिर्फ विचार व्यक्त किए बल्कि पर्यावरण और विशेष रूप से जंगलों की होती बेहताशा कटाई पर प्रस्तुत मार्मिक कविता पाठ किया। पहले दौर का संचालन विशाल शुक्ल ने तथा गोष्ठी का संचालन कवि रत्नाकर रतन ने किया। मंच के संयोजक विशाल शुक्ल ने आभार माना।

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