भगवान ने किया देवी रुक्मिणी का वरण वहीं, खुनाझिरकलां में चल रही भागवत कथा में रविवार को भगवान कृष्ण लीलाओं के विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या पं. भुवनेश कृष्ण शास्त्री ने की।
उन्होंने कथा में कहा कि मथुरा जब तक कृष्ण पहुंचते हैं तब तक तो सबको यह बात पता चल जाता है कि कृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि खुद ही परमपिता परमेश्वर हैं। कृष्ण क्या गए गोकुल तो मानों वीरान सा हो गया। उनके बिछडऩे का दुख कोई सहन नहीं कर पाता है। ग्वाल-बाल, गोपियां, गाय के साथ पेड़-पौधे मानों पूरी प्रकृति से भगवान से बिछडऩे का दुख नजर आ रहा है। गोपियों के मन की दशा जब कृष्ण को पता चलती है तो वे उद्धव को उनसे मिलने भेजते हैं।
इस संवाद को भी बड़ी सुंंदरता से बखान किया गया। पंडितजी ने बताया कि भगवान तो भक्त की मदद करते ही है। रुक्मिणी ने भगवान को मन ही मन वर मान लिया था, लेकिन उसका भाई शिशुपाल से उसका विवाह कराना चाहता था। जैसे ही यह संदेश भगवान को मिला वे दौड़े आए और रुक्मिणी का वरण कर लिया और उन्हें अपनी भार्या बनाया। भगवान के सांदीपनी आश्रम पहुंचने की कथा भी कही गई। सोमवार को सुदामा चरित्र के साथ कथा का समापन होगा।
उन्होंने कथा में कहा कि मथुरा जब तक कृष्ण पहुंचते हैं तब तक तो सबको यह बात पता चल जाता है कि कृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि खुद ही परमपिता परमेश्वर हैं। कृष्ण क्या गए गोकुल तो मानों वीरान सा हो गया। उनके बिछडऩे का दुख कोई सहन नहीं कर पाता है। ग्वाल-बाल, गोपियां, गाय के साथ पेड़-पौधे मानों पूरी प्रकृति से भगवान से बिछडऩे का दुख नजर आ रहा है। गोपियों के मन की दशा जब कृष्ण को पता चलती है तो वे उद्धव को उनसे मिलने भेजते हैं।
इस संवाद को भी बड़ी सुंंदरता से बखान किया गया। पंडितजी ने बताया कि भगवान तो भक्त की मदद करते ही है। रुक्मिणी ने भगवान को मन ही मन वर मान लिया था, लेकिन उसका भाई शिशुपाल से उसका विवाह कराना चाहता था। जैसे ही यह संदेश भगवान को मिला वे दौड़े आए और रुक्मिणी का वरण कर लिया और उन्हें अपनी भार्या बनाया। भगवान के सांदीपनी आश्रम पहुंचने की कथा भी कही गई। सोमवार को सुदामा चरित्र के साथ कथा का समापन होगा।