ध्वनि प्रदूषण तेजी से फैल रहा। वाहनों में इस्तेमाल किए जा रहे कई तरह के हार्न और महंगी बाइक में लगाए जा रहे साइलेंसर बड़ी तेजी से प्रदूषण फैला रहे हैं। छोटे शहर की ही बात करें तो करीब २० प्रतिशत बाइक एेसी हंै, जिनके साइलेंसर से पटाखे फोडऩे जैसी आवाज निकलती है। घर या फिर आस-पास से इस तरह की बाइक निकलती है जो बच्चे डर उठते हैं। पेड़-पौधों पर बैठे पक्षी उड़ जाते हैं। इस तरह की ध्वनि का अप्रत्यक्ष रूप से मानव और जीव जंतुओं के जीवन पर सीधा असर पड़ रहा। चूंकि ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव एकदम से सामने नहीं आता, जिसके कारण न तो इस पर अभी तक सरकार ने कोई ठोस कदम उठाए न ही राजनीतिक व सामाजिक संगठनों ने कोई प्रतिक्रिया दी। यही वजह है कि हर कोई ध्वनि के प्रदूषण पर पूरी तरह से मौन है, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी कम नहीं है। अधिकांश देशों में शोर के अधिकतम सीमा ७५ से ८० डेसीबल निर्धारित की गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार ९० डेसीबल के ऊपर की ध्वनि के प्रभाव में लम्बे समय तक रहने से व्यक्ति बहरा हो सकता है।
किसी भी शहर की बात करें तो वहां मैरिज लॉन में बजाए जाने वाले डीजे, चौपहिया वाहन के हार्न और एेसी बाइक जिनमें कई तरह की आवाज निकालने वाले साइलेंसर का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा तेज आवाज वाले पटाखे। शहर के मौजूद फैक्ट्रियां। प्रदूषण को रोकने के लिए एेसी वस्तुओं के निर्माण या फिर बिक्री पर रोक लगाई जानी चाहिए। कोलाहल अधिनियम के तहत कार्रवाई की बात करें तो साल में बमुश्किल एक या दो कार्रवाई ही हो पाती है।
डेसीबल १५० असहाय पीड़ा
डेसीबल १४० दर्द की शुरुआत
डेसीबल १३० संवेदना आरम्भ
डेसीबल ११० मोटन हार्न
सामूहिक प्रयास करेंगे
तेज आवाज वाली बाइक का इस्तेमाल शहर और छोटे गांव में भी हो रहा होगा। सम्बंधित थाना के सक्षम अधिकारी, यातायात और परिवहन की टीम सामूहिक रूप से कार्रवाई का प्रयास करेगी। नियमों तोडऩे वालों पर जुर्माना लगाया जाएगा।
संतोष पाल, एआरटीओ, छिंदवाड़ा
हर साल ३-४ प्रतिशत की बढ़ोतरी
तेज आवाज के कारण कम सुनने या फिर दर्द के मरीज हर साल ३ से ४ प्रतिशत बढ़ रहे हैं, ये संख्या युवाओं की है। इनमें तेज आवाज में गाने सुनने और एयर फोन का इस्तेमाल करने वाले युवा भी शामिल है।
डॉ. सुशील दुबे, ईएनटी स्पेशलिस्ट, जिला अस्पताल छिंदवाड़ा