scriptCorona: कोरोना ने रोजगार छीना तो महिलाओं ने खड़ा कर दिया लघु उद्योग | When Corona snatched employment, women created small scale industries | Patrika News
छिंदवाड़ा

Corona: कोरोना ने रोजगार छीना तो महिलाओं ने खड़ा कर दिया लघु उद्योग

समूह की महिलाएं प्रेरणा स्त्रोत हैं, जिन्होंने बिना सरकारी मदद के कोरोना के संकट काल में हाथों से रोजगार जाते ही स्वयं का एक लद्यु उद्योग स्थापित कर दिया।

छिंदवाड़ाJun 27, 2020 / 04:31 pm

babanrao pathe

छिंदवाड़ा. देश और दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। कोई भी व्यक्ति इससे अछूता नहीं रहा। बड़ी-बड़ी कम्पनियां और फैक्ट्री बंद पड़ी है। लोगों का रोजगार छिन गया। बड़ी संख्या में लोग पलायन कर गांव लौटे हैं और रोजगार तलाश रहे। ऐसे लोगों के लिए दो समूह की महिलाएं प्रेरणा स्त्रोत हैं, जिन्होंने बिना सरकारी मदद के कोरोना के संकट काल में हाथों से रोजगार जाते ही स्वयं का एक लद्यु उद्योग स्थापित कर दिया।

जुन्नारदेव ब्लॉक के राखीकोल गांव की महिलाएं दूसरों के पास मजदूरी करती थीं। कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान उन्हें कोई काम नहीं मिला। गांव की केकती वर्मा दोना पत्तल बनाने का काम करती थीं उससे प्रेरित होकर जीविका चलाने के लिए महिलाओं ने शिखा और राखी नाम से समूह तैयार किया। प्रत्येक समूह में बीस-बीस महिलाओं को शामिल कर पास की जमा पूंजी लगाकर 16-16 हजार रुपए कीमत की दो मशीनें बनवाई। माहुल के पत्ते जंगल से लेकर आई और दोना, पत्तल एवं नाश्ते की प्लेट बनाना शुरू किया। बमुश्किल बीस दिन ही काम कर पाई। तैयार माल को बेचने के बाद हिसाब किया तो किसी महिला को 2 हजार तो किसी को 2 हजार 500 रुपए की बचत आई। लॉकडाउन खुलने के बाद महिलाओं ने फिर से काम शुरू कर दिया। एक महिला एक दिन में 600 दोने, पत्त और प्लेट बना लेती है।

मशीनों की लागत निकल चुकी
समूह की अध्यक्ष अमृता कुमरे बताती है कि शुरुआत में जो लागत उन्होंने मशीन तैयार करने के लिए लगाई थीं वह निकल चुकी है, अब जो भी आमदानी होगी वह शुद्ध बचत है। जंगल से पत्ते निशुल्क मिल जाते हैं। दोना, पत्तल और नाश्ते की प्लेट बनाने के लिए मशीन बिजली से चलती है जिसका केवल बिल चुकाना पड़ता है इसके अलावा कोई दूसरा खर्च नहीं है। एक दिन पहले पास के जंगल जाकर पत्ते तोड़कर लाती है और उन्हें एक या फिर दो दिन सूखाने के बाद उपयोग में लेती है। मशीनें भी बनावाकर बेच रही, एक मशीन का मूल्य 18 हजार रुपए तय किया है। गांव से शुरुआत की बिना किसी मार्केटिंग के काम चल रहा है।

भोपाल में मांग

अर्पिता कुमरे ने बताया कि भोपाल से भी आर्डर मिल रहे हैं। छिंदवाड़ा और जिला सिवनी में काफी दिनों से सामग्री बेच रही थीं, लेकिन हाल ही में भोपाल से भी मांग हुई है। मांग की पूर्ति करने के लिए अब आठ मशीनों पर महिलाएं काम करेंगी। माहुल के पत्ते पूरी तरह से हर्बल होते हैं जिसके कारण इनकी मांग बाजार में अधिक है। पिछले कुछ दिनों से आजीविका मिशन की विकासखण्ड प्रबंधक मोरिना अलबर्ट भी महिलाओं को मदद कर रही।

दोना सौ 40 रुपए
नाश्ता प्लेट सौ 60 रुपए
पत्तल सौ 80 रुपए

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