सातवें दिन पूतना को मौत की नींद सुला दिया। तीन महीने के थे तो कान्हा ने व्योमासुर को मार गिराया।
छिंदवाड़ा•May 18, 2019 / 05:43 pm•
arun garhewal
जन्म के साथ ही कान्हा ने कर्म का चयन किया
छिंदवाड़ा. जुन्नारदेव. ग्राम भडऱी में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन कथा वाचक पं. सुशील महाराज ने उपस्थित श्रद्धलुओं को बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लेते ही कर्म का चयन किया। नन्हें कृष्ण ने जन्म के छठे दिन ही शकटासुर का वध कर दिया, सातवें दिन पूतना को मौत की नींद सुला दिया। तीन महीने के थे तो कान्हा ने व्योमासुर को मार गिराया।
प्रभु ने बाल्यकाल में ही कालिया वध किया और सात वर्ष की आयु में गोवर्धन पर्वत को उठा कर इंद्र के अभिमान को चूर-चूर किया। गोकुल में गोचरण किया तथा गीता का उपदेश देकर हमें कर्मयोग का ज्ञान सिखाया। प्रत्येक व्यक्ति को कर्म के माध्यम से जीवन में अग्रसर रहना चाहिए। पांचवे दिन आचार्य श्री ने श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं और कंस वध का भजनों सहित विस्तार से वर्णन किया।
उन्होंने कहा कि मनुष्य जन्म लेकर भी जो व्यक्ति पाप के अधीन होकर इस भागवत रुपी पुण्यदायिनी कथा का श्रवण नहीं करते तो उनका जीवन ही बेकार है और जिन लोगों ने इस कथा को सुनकर अपने जीवन में इसकी शिक्षाएं आत्मसात कर ली हैं तो मानों उन्होंने अपने पिताए माता और पत्नी तीनों के ही कुल का उद्धार कर लिया है। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने गौवर्धन की पूजा करके इद्र का मान मर्दन किया। भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का साधन गौ सेवा है। श्रीकृष्ण ने गो को अपना अराध्य मानते हुए पूजा एवं सेवा की याद रखोए गो सेवक कभी निर्धन नहीं होता।
श्रीमद्भागवत कथा साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन है। यह कथा बड़े भाग्य से सुनने को मिलती है। इसलिए जब भी समय मिले कथा में सुनाए गए प्रसंगों को सुनकर अपने जीवन में आत्मसात करेंए इससे मन को शांति भी मिलेगी और कल्याण होगा।
कलयुग में केवल कृष्ण का नाम ही आधार है जो भवसागर से पार लगाते हैं। परमात्मा को केवल भक्ति और श्रद्धा से पाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन इस संसार का नियम है यह संसार परिवर्तनशील है जिस प्रकार एक वृक्ष से पुराने पत्ते गिरने पर नए पत्तों का जन्म होता हैए इसी प्रकार मनुष्य अपना पुराना शरीर त्यागकर नया शरीर धारण करता है। उक्त उपदेश बी भागवत आचार्य द्वारा दिए गए कथा उपरांत महा आरती एवं प्रसाद वितरण किया गया।
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