समाज में बच्चों के प्रति बढ़ती हिंसा यौन उत्पीड़न असुरक्षा और उनके मौलिक अधिकारों के हनन जैसे ज्वलन्त मुद्दे को लेकर प्रभु श्री राम की तपोस्थली चित्रकूट में बच्चों साधू संतो और समाजसेवियों ने कामदगिरि परिक्रमा मार्ग पर शांति मार्च निकालते हुए उस सिस्टम को झकझोरने का भागीरथी प्रयास किया जो इन विषयों पर धृतराष्ट्र की भूमिका निभा रहा है।
हांथों में तख्तियां लेकर किए कई सवाल
नन्हे हांथों में तख्तियां और उनपे लिखे स्लोगन कई सवाल खुद उत्पन्न कर रहे थे कि देश में बच्चों के प्रति इतनी हैवानियत हिंसा असुरक्षा क्यों? क्यों उन्हें पाठशाला का मुंह देखने की जगह सड़कों धार्मिक स्थलों पर भीख मांगनी पड़ती है, आखिर क्या कसूर है हमारा? शांति मार्च में शामिल बच्चों के उत्थान के लिए कई वर्षों से प्रयासरत समाजसेवी अभिमन्यु सिंह ने कहा कि बुन्देलखण्ड और खासतौर से चित्रकूट में बच्चों की स्थिति सबसे दयनीय है। बच्चों के साथ हिंसा, अमानवीय और यौन उत्पीड़न की घटनाएं पूरे सिस्टम को सोचने के लिए मजबूर करती हैं। एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि 17 जनवरी की रात परिक्रमा मार्ग पर एक किशोरी को मारकर फेंक दिया जाता है लेकिन कानून के हांथ अभी तक खाली हैं। स्कूल जाने की उम्र में बच्चे भीख मांगने को मजबूर हैं जो पूरी व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करता है।
साधू संत भी हुए शामिल
शांति मार्च में बच्चों और समाजसेवियों के साथ क्षेत्र के विभिन्न मठ मंदिरों आश्रमों के साधू संत भी शामिल हुए। शांति मार्च में शामिल कामदगिरि प्रमुख द्वार के महंत मदन गोपाल दास ने कहा कि धर्म नगरी में बच्चों के प्रति बढ़ती आपराधिक घटनाएं चिंता का विषय हैं। किशोरी की हत्या ने इस बात को और पुख्ता कर दिया है कि दो राज्यों के मध्य पड़ने वाले चित्रकूट में बाल सुरक्षा और अधिकारों को लेकर कितनी सतर्कता बरती जाती है। जब तीर्थस्थलों में ही बच्चे सुरक्षित नहीं तो अन्य जगहों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
बहरहाल अपने मासूम चेहरों से कई सवाल पूछते देश के भविष्य किस दिशा में जा रहे हैं यह सोचने की फुर्सत शायद धर्म जाति मन्दिर मस्जिद सम्प्रदाय की राजनीति करने वाले सियासी मठाधीशों के पास नहीं है। क्योंकि उन्हें इन मासूमों से वोट नहीं मिलेगा।