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चित्रकूट

84 हजार ऋषियों की है तपोस्थली, आदिमानव के उकेरे शैल चित्र बयां करते हैं बुंदेलखंड की प्राचीनता

दानवों का भी साधना स्थल रहा है चित्रकूट, 16वीं शताब्दी में यहां के शासक रामचन्द्र देव के दरबार की शान हुआ करते थे बीरबल और तानसेन।

चित्रकूटSep 18, 2017 / 02:00 pm

नितिन श्रीवास्तव

Chitrakoot historical place tourist places UP Hindi News

84 हजार ऋषियों की है तपोस्थली, आदिमानव के उकेरे शैल चित्र बयां करते हैं बुंदेलखंड की प्राचीनता

चित्रकूट. हुक्मरानों के नकारापन के कारण लोगों की आंखों से ओझल और देश दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर महत्वपूर्ण स्थान पाने से वंचित बुंदेलखंड की प्राचीन धार्मिक ऐतिहासिक धरोहरें अपने आप में कितना कुछ बयां करती हैं ये उन्हें देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है ,लेकिन अफ़सोस या दुर्भाग्य चाहे कुछ भी कहें सत्य यही है की बुंदेलखंड को मात्र वोटबैंक और राजनीति का केंद्र बनाकर रखा गया और अब तक के हुक्मरानों ने सत्ता पर काबिज होने के बाद सिर्फ पैकेज का लॉलीपॉप दिया। यदि लखनऊ दिल्ली में बैठे सफेदपोशों ने आज तक यहां की पर्यटन संभावनाओं लोककलाओं रीतिरिवाजों पर ध्यान देकर उनके विकास का खाका तैयार किया होता तो शायद आज बुंदेलखंड के माथे से पलायन नाम का धब्बा दूर हो गया होता। बुंदेलखंड के लुप्तप्राय ऐतिहासिक पौराणिक स्थलों के बारे में तथ्यपरक जानकारी जुटा कर उसे लोगों तक पहुंचाने के लिए चित्रकूट में शोधार्थियों के दल द्वारा आयोजित की गयी यात्रा के दौरान उनका उनका दल लगातार उन दुर्गम स्थानों तक पहुंचा जिनके बारे में कई प्राचीन तथ्य पौराणिक मान्यताएं ऐतिहासिक उल्लेख दर्ज हैं। सबसे ख़ास बात यह की कोई भी स्थान बिना किसी प्रमाण के नहीं मिल रहा यानी जिस स्थान के बारे में जो उल्लेख जिस प्राचीन धर्मिक ऐतिहासिक माध्यम में मिल रहा है उन जगहों विरासतों का स्वरूप प्रमाणिकता भी वैसी ही उसी दशा में मौजूद है। शोधार्थियों के दल की अंतिम चरण की यात्रा ऐसे ही एक अद्भुत अविश्वसनीय और अकल्पनीय स्थान पर पहुंची जहां प्राचीन भारत का दर्शन आदिमानव द्वारा बनाए गए शिलालेखों के माध्यम से होता है तो कंदराओं गुफाओं के द्वारा धार्मिकता का प्रमाण मिलता है और ऐतिहासिक विरासतें आज भी इतिहास के पन्नों में अपनी उपस्थिति मजबूती के साथ दर्ज कराती हैं। शोधार्थियों का दल पहुंचा जनपद के मऊ थाना क्षेत्र अंतर्गत बराह कोटरा गाँव के पास यमुना नदी के तट पर स्थित चित्रकूट के प्रवेश द्वार ऋषिवन। कोटरा दैत्यराज बाणासुर की माता का नाम था। गाँव से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ऋषिवन , पौराणिक मान्यता उल्लेखों के अनुसार यहां 84 हजार ऋषि मुनि तपस्या किया करते थे जिसकी वजह से इस स्थान को ऋषिवन के नाम से जाना जाता है। भरद्वाज मुनि के आश्रम से चलकर श्री राम ने यहीं से चित्रकूट मण्डल में प्रवेश किया था।

तत उत्थाय ते सर्वे स्प्रष्टा नध्यः शिवं जलम। पन्थान म्रशिभिर्जुशतम चित्रकूटस्य तं ययुः।।
— बाल्मीकि रामायण 56/4


चित्रकूट सिर्फ देवी देवताओं और ऋषि मुनियों की ही तपस्थली नहीं है बल्कि सिद्धियां प्राप्त करने के लिए दानव भी यहां तपस्या किया करते थे। महाभारत काल में दैत्यराज बाणासुर की राजधानी रहा यह क्षेत्र असुरों का आराधना स्थल रहा है। बाणासुर की माँ भी महान शिव भक्त थीं। कहा जाता है कि बाणासुर की मां प्रतिदिन भगवान् शिव की पूजा के लिए कैलाश पर्वत जाया करती थीं। मां के वृद्ध हो जाने पर जब वह कैलाश आने जाने में असमर्थ हो गईं तो बाणासुर ने घोर तपस्या करते हुए शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करते हुए वरदान माँगा की वे खुद प्रतिदिन यहां आकर उसकी मां को दर्शन दिया करेंगे। बरहा गाँव के नजदीक ऋषिवन नाम के स्थान में एक बड़ी शिला से निर्मित गुफा जैसे स्थान के अन्दर अनेकों शिवलिंग विराजमान हैं। कंदराओं से निकलती जलधारा से शिवलिंगों का निरंतर जलाभिषेक होता रहता है। बाणासुर और उसकी मां के महान शिवभक्त होने की गवाही दे रहा प्राकृतिक सौन्दर्य से ओतप्रोत यह स्थान भी देखरेख के अभाव में ध्वस्त होता जा रहा है। लोगों ने बताया कि यहां से कई ट्रक मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं।
कोटरा गांव के इर्दगिर्द कई छोटी छोटी पहाड़ियों में से एक है सुगरिया पथरी। इस पहाडी में हजारों वर्ष पूर्व आदिमानवों के बनाये गए शैल चित्र बिखरे पड़े हैं। इन शैलचित्रों में युद्धरत योद्धाओं, विभिन्न प्रकार के आयुधों और जानवरों के आखेट के चित्रों की भरमार है। विभिन्न आकृतियों के तीर, फरसे और धनुष के चित्रण से यह मालूम पड़ता है कि इस स्थान में मनुष्य कबीलों के रुप में रहना प्रारंभ कर चुका था और इनके बीच युद्ध होने भी प्रारंभ हो चुके थे। पुरातात्विक महत्व के इन स्थलों तक अभी सरकार की नजरें नहीं पहुंच पाई हैं। सौ प्रतिशत प्राकृतिक इन स्थलों में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सरकार को कोई कार्य योजना बनाकर नहीं भेजने से फिलहाल ये स्थल अभी विकास से कोसों दूर और पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कोई व्यवस्था न होने के कारण लोग अपनी इन अमूल्य विरासतों से दूर एवं अनभिज्ञ है. कोटरा गांव से तीन किलोमीटर दूर चित्रकूट ज़िले का अंतिम गाँव है परदवां। किवदन्तियों के अनुसार यह भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न की राजधानी हुआ करती थी। यहाँ क़रीब पाँच छह फीट मोटी पत्थर की विशाल प्राचीरें नजर आती हैं जो इस बात की तस्दीक करती हैं कि यहां कभी एक विशाल किला रहा होगा।
ऐतिहासिक विरासतें भी शामिल

क्षेत्र में सिर्फ प्राचीन और धार्मिक स्थल ही नहीं अपितु ऐतिहासिक धरोहरें भी अपनी गौरवशाली गाथा बयां करती हैं। बघेल शासकों में सर्वाधिक योग्य राजा रामचंद्र देव का विवाह माधव सिंह की अत्यंत रूपवान पुत्री यशोदा के साथ हुआ था। रानी यशोदा कुशल कवियत्री और संगीत की गहरी समझ रखती थीं। इन्हांने अपने संरक्षण में चित्रकूट को साहित्य और संगीत का गढ़ बना दिया था। सन 1532 में बेहट में जन्मे मकरंद पाण्डेय के पुत्र त्रिलोचन ने स्वामी हरिदास और मोहम्मद गौस से संगीत की शिक्षा ग्रहण की थी। देश के महानतम संगीतकार के रूप में पहचाने जाने वाले त्रिलोचन उर्फ़ तानसेन सन 1557 में राजा रामचन्द्र के दरबार की शान बने। सन 1528 में सीधी जिले के घोघरा गाँव में जन्मे गंगादास ब्राह्मण के पुत्र महेश दास जिन्हें दुनिया बीरबल के नाम से जानती है वे भी राजा रामचंद्र देव के दरबार की शोभा बढाया करते थे। रामचंद्र देव ने इन दोनों को मुग़ल सम्राट अकबर को नजराने के तौर में गिफ्ट किया था। भारत के ऐसे महान राजा के किले के अवशेष उसकी समृद्धता की कहानी बयां कर रहे हैं। परन्तु पीने के पानी का समुचित प्रबंध ना होने, महत्वपूर्ण स्थलों के मानचित्र का अभाव, इन स्थलों तक पहुंचने और उनकी दूरी प्रदर्शित करने वाले सूचना पटों की कमी के कारण भारतीय संस्कृति की विरासत को संजोये इन स्थलों का दीदार करने आये पर्यटकों (ज्यादातर स्थानीय) को भारी निराशा ही हाथ लगती है। यह पूरा स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत खानापूर्ति के नाम पर संरक्षित है। पुरातत्व विभाग मात्र बोर्ड लगाकर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहा है। किसी टूरिस्ट गाइड के भी न होने के कारण यहाँ आये लोगों को इस स्थल के तमाम पहलुओं की जानकारी नहीं मिल पाती है।
कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा की बुंदेलखंड को हमेशा वोट बैंक और राजनीति की बिसात पर केंद्रबिंदु बनाकर छला गया है। यदि पूरे बुंदेलखंड की अमूल्य विरासतों को अभी तक सहेजा संजोया और उनका विकास देखरेख किया गया होता तो शायद आज तस्वीर कुछ दूसरी ही होती। यात्रा संयोजक संतोष बंसल का कहना है की सारे तथ्यों प्रमाणों को एकत्रित किया जा रहा है और जल्द लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बुंदेलखंड की गौरवगाथा उसकी प्राचीनता व् धार्मिक तथा ऐतिहासिक महत्ता से अवगत कराया जाएगा।

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