चमत्कारी कुंए में स्नान को उमड़ने लगा श्रद्धालुओं का सैलाब श्री राम की तपोभूमि में न जाने ऐसे कितने स्थान हैं जहां श्री राम की अलौकिक ऊर्जा का एहसास होता है. ऐसी मान्यता है कि चौदह वर्षों के वनवासकाल के दौरान श्री राम ने साढ़े ग्यारह वर्ष चित्रकूट में बिताए एक वनवासी के रूप में. कई पौराणिक व् धार्मिक ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख मिलता है. श्री रामचरितमानस में तो विस्तृत वर्णन किया है गोस्वामी तुलसीदास ने. इसीलिए चित्रकूट को भगवान राम की तपोस्थली कहा जाता है. इसी तपोभूमि के भरतकूप क्षेत्र में मौजूद है एक चमत्कारी कुंआ जिसके जल से स्नान करने से ऐसी मान्यता है कि समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही नहीं कई असाध्य रोग भी इस जल के स्नान से दूर होते हैं ऐसा माना जाता है. श्री रामचरितमानस में भी इस क्षेत्र का उल्लेख किया गया है.
सभी तीर्थों का फल एक ही स्थान पर वैष्णव धर्मावलंबियों की मान्यता है कि इस कूप में स्नान से समस्त तीर्थो का पुण्य तो मिलता ही है साथ की शरीर के असाध्य रोग भी दूर होते है। भगवान राम के चरणों के प्रताप से मनुष्य मृत्यु के पश्चात स्वर्गगामी होता है और मोक्ष को प्राप्त करता है.
इसलिए है इस कुंए की महत्ता पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जब श्री राम वनवासकाल के दौरान चित्रकूट में प्रवास कर रहे थे तो उनके अनुज भरत (जो श्री राम से अत्यधिक प्रेम करते थे) उन्हें मनाने चित्रकूट पहुंचे और साथ में श्री राम के राज्याभिषेक को सारे तीर्थों का जल भी अपने साथ ले आए, परंतु एक वनवासी के रूप में प्रवास कर रहे श्री राम ने पिता दशरथ की आज्ञा और अपनी दृढ प्रतिज्ञा पर अडिग रहते हुए अयोध्या वापस लौटने से इंकार कर दिया.
कुंए में भरत ने डाला समस्त तीर्थों का जल
पुजारी पण्डित राम दास ने बताया कि राम की दृढ प्रतिज्ञा को सुन दुःखी हुए भरत ने राम की खडाऊं लेकर अयोध्या वापस लौटते समय रास्ते में स्थित एक कुंए में उन समस्त तीर्थों के जल को छोड़ दिया जिसे वे श्री राम के राज्याभिषेक के लिए लाए थे. जिस क्षेत्र में यह कुंआ स्थित था उस क्षेत्र को तब से भरत और जिस कुंए में जल छोड़ा गया उस कुंए यानी कूप को मिलाकर इस क्षेत्र का नाम भरतकूप पड़ गया. इसके जल से मोक्ष की प्राप्ति और असाध्य रोग दूर होते हैं. पुजारी के मुताबिक वास्तुशिल्प के आधार पर कूप के पास स्थित मंदिर काफी प्राचीन है और ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण बुंदेली शासकों द्वारा कराया गया था. मंदिर में श्री राम माता जानकी, लक्ष्मण, भरत व् शत्रुघ्न की प्रतिमाएं स्थापित हैं जो अष्टधातु की बताई जाती हैं.