जिस देश में प्रधानमंत्री स्वच्छता के लिए राष्ट्रीय सफाई अभियान चला रहे हैं, जिस शहर में फिल्म अभिनेता आमिर खान सफाई अभियान के लिए प्रोत्साहित करने आते हैं, उसी शहर में जलाशयों के बिगड़े हालात के दर्द को विदेशी पावणे ने महसूस किया। ये हैं लंदन से आए 70 वर्षीय केरोन रॉनस्ले, जो राजस्थान टूर के तहत जोधपुर आए। यहां प्राकृतिक जलाशयों की दुर्दशा देखी तो दुखी हुए और जुट गए जलाशयों की सफाई में। केरोन करीब 2 साल से शहर के जलाशयों की दशा सुधारने में लगे हुए हैं। केरोन अब तक पांच जलाशयों का खोया हुआ नूर लौटा चुके हैं।
इन तालाबों की सफाई की
केरोन 2014 में पहली बार जोधपुर आए। यहां के प्राकृतिक जलाशयों के बिगड़े हाल देख दुखी हुए और अकेले ही सफाई में जुट गए। केरोन ने गुलाब सागर, महिलाबाग का झालरा, झालरे के पास छोटा झालरा, क्रिया झालरा व श्रीनारायण की बावड़ी की सफाई की। उन्होंने बताया कि क्रिया के झालरे में अभी काम बाकी है, इसलिए अब भी उसकी सफाई कर रहे हैं। बाद में शहर के अन्य जलाशयों पर भी ध्यान देंगे।
पागल और जोकर कहा
केरोन ने बताया कि मदद के लिए सरकारी स्तर पर किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिला। वे कहते हैं कि उन्हें मदद के रूप में सरकारी तंत्र का सपोर्ट चाहिए, जो उन्हें नहीं मिला। लोगों ने उन्हें पागल और जोकर कहा। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, और अकेले ही जुट गए सफाई में। इनका कहना है कि अगर निगम कर्मचारी नियमित रूप से दिन में केवल 2 घंटे भी ध्यान दें, तो शहर के तालाबों-झालरों का रूप निखर जाएगा।
अगली लड़ाई पानी के लिए
केरोन ने कहा कि विश्व में अगला युद्ध पानी के लिए होगा। जोधपुर के जलाशय बहुत सुन्दर हैं, लेकिन सभी की स्थिति खराब है। तालाब, झालरे यहां की ऐतिहासिक विरासत हैं, पवित्र स्थान हैं, जिस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। केरोन ने बताया कि जब वे जोधपुर आए, तब यह सफाई अभियान शुरू करने का मन नहीं था। लेकिन यहां के ऐतिहासिक स्थलों पर भ्रमण करने पर गंदगी को देखकर दिल नहीं माना और सफाई करने की ठानी। इससे पहले जैसलमेर की यात्रा कर आए केरोन ने लोगों में पर्यावरण व स्वच्छता की अलख जगाई ।
विदेशों में बुजुर्ग काम कर सकते हैं तो भारत में क्यों नहीं ?
केरोन ने बताया कि विदेशों में बुजुर्ग काम करते हैं और परिवार व देश के विकास में सहयोग करते हैं। फिर भारत में वृद्ध लोग काम क्यों नहीं करते हैं? वृद्ध लोग काम कर यहां की विरासत, सभ्यता, परम्पराओं, पुरातन संपदाओं को संरक्षित रखने का कार्य कर देश के विकास में सहयोग दे सकते हैं। पेशे से आर्ट टीचर और पर्यावरणविद रिटायरमेंट के बाद अपने भाई की ब्रॉंज फाउंडरी में पार्ट टाइम करने वाले पेंशनर केरोन सुबह से शाम तक निस्वार्थ भाव से काम कर रहे हंै। उनके साथ स्थानीय उगमाराम, मनोहर सिंह व गोताखोर धरमवीरसिंह पंवार के अलावा कोई नहीं जुड़ा। उन्होंने कहा कि शर्म की बात है कि यहां के लोग स्वच्छता, विरासत संरक्षण के लिए काम नहीं करते।
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