दशकों से प्यासा है पाठा
इलाके के कस्बाई से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक में पेयजल संकट गहराने लगा है. ग्रामीणों को पानी के लिए जद्दोजहद करते देखा जा सकता है. बीहड़ में बसे गांवों में तो और दिक्कत है. सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ग्रामीण पानी की तलाश में निकल पड़ते हैं. कई इलाकों में हैण्डपम्प अभी से ही रूठ चुके हैं. महिलाओं को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. बतौर उदाहरण मानिकपुर ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत खिचरी के बेलहा गांव में भीषण पेयजल संकट व्याप्त है. गांव के लोग पानी के लिए सुबह से भरी दोपहरी व शाम तक जद्दोजहद करते नजर आते हैं. ऐसा ही संकट ब्लॉक के चमरौहां गांव में भी पिछले कई दिनों से नलकूप खराब पड़ा है परिणामतः ग्रामीणों को दो से तीन किलोमीटर दूर स्थित कुंए व चोहड़ों से पानी लाना पड़ता है. कस्बाई क्षेत्र में भी कई मोहल्ले पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं. दर्जनों गांवों में यही समस्या है.
ऐसा नहीं कि सियासत और सिस्टम की नजर में पाठा की ये समस्या पिछले कई वर्षों से नहीं है. अलबत्ता 70 के दशक में पेयजल संकट से निपटने के लिए इंदिरा गांधी की सरकार में एशिया की सबसे बड़ी पाठा जलकल योजना की शुरुआत की गई थी. बावजूद इसके सिस्टम की उदासीनता व करप्शन की भेंट चढ़ी इस योजना ने बीच में ही दम तोड़ दिया और पाठा प्यासा का प्यासा ही रहा. हर विधानसभा व लोकसभा चुनाव में जनता के नुमाइंदों द्वारा वादे किए जाते हैं पेयजल संकट से मुक्ति के लिए लेकिन चुनाव बीतने व जीतने के बाद सब कुछ शून्यावस्था में चला जाता है.
पानी का ये संकट पाठावासियों के लिए आक्रोश का सबब बनता जा रहा है. बेलहा, कोटा कंडेला, ऊंचाडीह जैसे कोल आदिवासी बाहुल्य गांवों के ग्रामीणों ने पेयजल संकट सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं को लेकर आगामी 6 मई को होने वाले मतदान के बहिष्कार की चेतावनी दी है. बेलहा गांव के ग्रामीणों का कहना है कि पिछले 10 वर्षों से क्षेत्र में पेयजल संकट है साथ ही कई मूलभूत समस्याएं भी व्याप्त हैं. कई बार दिल्ली से लेकर लखनऊ तक गुहार लगाई गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई समाधान तो दूर की बात. नेता हर चुनाव में वादे कर जीतने के बाद भूल जाते हैं. गांव के लोगों ने मतदान बहिष्कार की चेतावनी दी.