खेती की जमीन में पोषक तत्वों की कमी की वजह यह भी है कि यहां गोबर की खाद और वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल कम हो रहा है। एक फसल होते ही दूसरी बुवाई कर दी जाती है। गर्मियों में गहरी जुताई नहीं होती। पहले पेड़-पौधे बहुतायत होने से उनके पत्ते खेतों में गिरकर खाद का काम करते थे, लेकिन अब पेड़-पौधे भी कम हो गए है।
यहां कृषि विभाग की मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला के कृषि अनुसंधान अधिकारी रसायन बिट्टू सिंह ने बताया कि इस बार खरीफ के सीजन में मिट्टी के करीब चार हजार नमूनों की जांच की गई, इनमें सुक्ष्म तत्वों के नमूनों में कार्बनिक पदार्थ, लोह तत्व और जिंक की कमी पाई गई है। इसके अलावा नाइट्रोजन और पोटास की भी कमी आई है। पौधों में हरापन लाने के लिए नाइट्रोजन की बड़ी भूमिका होती है, लेकिन इसकी कमी से फसल साल-दर-साल हरापन खोती जा रही है। जबकि पोटास की कमी से फसलों में दानों का आकार छोटा हो रहा है। प्रधानमंत्री मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के तहत जिले में दो चरणों में अब तक जिले में करीब चार लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाए जा चुके हैं, जिनमें मिट्टी की सेहत का रिकार्ड दर्ज होगा।
आज बच्चों, महिलाओं और पुरूषों में भी आयरन, जिंक, कैल्शियम जैसे तत्वों की कमी पाई जा रही है। वजह साफ है कि मानव को भी ये तत्व खाद्यान्न से ही मिलते हैं और जब खाद्यान्न में ही इन तत्वों की कमी होगी तो मानव को यह तत्व पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाएंगे, नतीजतन शरीर में इन तत्वों की कमी आ जाएगी।
जिले में वर्ष २०़़१७-१८ में खेतों में ४२९३३ मैट्रिक टन यूरिया का इस्तेमाल किया गया था। वर्ष २०१८-१९ में ३८४५० मैट्रिक टन तथा वर्ष २०१९-२० में ४३५८१ मैट्रिक टन यूरिया का इस्तेमाल किया गया। इस वर्ष जिले में ४६ हजार मैट्रिक टन यूरिया का इस्तेमाल हुआ है। यह सिर्फ खरीफ के आंकड़े हैं। रबी में यूरिया की खपत इसके अलावा है।