नगर परिषद और जिला प्रशासन की ओर से वर्ष २००५ से लेकर अब तक डेढ दशक में की गई कार्रवाई में जिले में करीब सवा क्ंिवटल से ज्यादा पॉलीथिन की थैलियां जब्त की जा चुकी है, लेकिन इन पन्द्रह साल में जिला प्रशासन ने कभी भी यह प्रयास नहीं किया कि आखिर जिले में पॉलीथिन की सप्लाई कहां से हो रही है।
थोक व्यापारी ने बताया कि पुन: चक्रित पॉलीथिन की थैलियों की सप्लाई भीलवाड़ा से होती है। एक अन्य व्यापारी का कहना था कि मध्यप्रदेश से भी कुछ लोग पॉलीथिन की थैलियों की सप्लाई करते हैं।
शहर में फल व सब्जी विक्रेताओं का कहना था कि उनके यहां तो कुछ लोग साइकिल पर आते हैं और थैलियां बेचकर चले जाते हैं। शहर में ऐसे कुरियर थोक व्यापारियों के पनपाए हुए हैं, जो कमीशन के आधार पर पॉलीथिन की थैलियों की सप्लाई कर रहे हैं।
शहर के नाले-नालियों से लेकर कचरे के ढेर में भी अधिकांश मात्रा पॉलीथिन थैलियों की नजर आ रही है। जो पशुओं के साथ ही पर्यावरण के लिए भी घातक बन रही हैं। इन थैलियों में सेल्यूलोज के बजाए सिंथेटिक प्लास्टिक होने से इन्हें मानव निर्मित दुष्चक्र की श्रेणी में माना जा रहा है।