चित्तौड़ का मार्बल उद्योग एक नजर में
मार्बल-ग्रेनाइट यूनिट: करीब 250
वार्षिक टर्न ओवर-800 से एक हजार करोड़ रुपए
आजीविका- दस हजार लोगों को रोजगार
हमारे लिए व्यापार से पहले देश हमारे लिए व्यापार से पहले देश है। डायमंड टूल्स जो हमारी इंडस्ट्री में उपयोग होता है वो चीन से अधिक आता है। कुछ अन्य मशीनरी भी है। यदि चीनी उत्पादों पर रोक लग जाए तो स्वदेशी उद्योग विकसित होगा व रोजगार बढ़ेगा। इससे भारतीय उद्योगों को लाभ होगा।
गोविन्द गदिया, वरिष्ठ मार्बल उद्यमी, चित्तौडग़ढ़
देश से बड़ा हमारे लिए कुछ नहीं चीन पर मार्बल उद्योग कई मामलों में निर्भर है लेकिन देश से बड़ा हमारे लिए कुछ नहीं है। मार्बल उद्यमी चीनी उत्पादों का त्याग करने के लिए तैयार है। स्वदेशी तकनीक व उपकरण विकसित करेंगे। इससे चीन पर निर्भरता नहीं होकर राष्ट्र की भी प्रगति होंगी।
अरविन्द ढीलीवाल, अध्यक्ष, औद्योगिक समूह संस्थान, आजौलियां का खेड़ा, चित्तौडग़ढ़
चीन के बिना भी हम प्रगति कर सकते मार्बल इंडस्ट्री पूरी तरह स्वदेशी बनने के लिए तैयार है। कटिंग, सेगमेंट के मामले में चीन पर निर्भर है लेकिन उसका विकल्प निकालेंगे। चीन के बिना भी हम और हमारा उद्योग प्रगति कर सकते ये दुनिया को दिखा देंगे। उद्योग का स्वरूप आने वाले दिनों में बदलेगा।
संजय ढीलीवाल, सचिव, चित्तौडग़ढ़ मार्बल लघु उद्योग संस्थान
आवश्यकता अविष्कार की जननी आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है। मार्बल उद्योग को चीन पर निर्भरता छोडऩी पड़े तो तैयार है। चीन से नहीं आएंगे तो हम खुद ही वो मशीनरी व कटर तैयार करेंगे। शुरू में कुछ मुश्किल आ सकती पर भविष्य में प्रगति की राह तेज होगी और रोजगार भी बढ़ेगा।
गोपालस्वरूप ओझा, अध्यक्ष,चित्तौडग़ढ़ मार्बल लघु उद्योग संस्थान