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चित्तौड़गढ़

जीत से पहले क्यों मिल रही चुनौती गढ़ बचाने की

पांच वर्ष पहले जिले में विधानसभा चुनाव में परिणाम भले एक तरफा आए और सभी पांचों सीटों पर भाजपा जीत गई,लेकिन हर बूथ पर विजेता प्रत्याशी ही मजबूत नहीं रहा।

चित्तौड़गढ़Sep 04, 2018 / 10:53 pm

Nilesh Kumar Kathed

chittorgarh

जीत से पहले क्यों मिल रही चुनौती गढ़ बचाने की


चित्तौडग़ढ़.पांच वर्ष पहले जिले में विधानसभा चुनाव में परिणाम भले एक तरफा आए और सभी पांचों सीटों पर भाजपा जीत गई,लेकिन हर बूथ पर विजेता प्रत्याशी ही मजबूत नहीं रहा। पराजित होने वाले प्रत्याशियों ने भी कई बूथों पर विजेता से बहुत अधिक मत हासिल कर ये दिखाया कि विजेता का वर्चस्व हर जगह नहीं है। वहीं जीत कर विधायक बनने वाले प्रत्याशियों के मन में भी ऐसे बूथों के बारे में कसक रही जहां उनके पराजित प्रतिद्धंदी ने बहुत अधिक मत हासिल किए। अधिक मत हासिल करने वालों की पांच वर्ष तक जद्दोजहद ऐसे बूथ क्षेत्र में अपना जनाधार बचाए रखने की रही वहीं विरोधी इस जनाधार में सेंध लगाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहे। वर्ष २०१३ के विधानसभा चुनाव में कुछ बूथों पर विजेता व निकटतम प्रत्याशी १०० से भ्री कम मतों पर सिमटे तो कुछ बूथों पर ५०० से एक हजार तक वोट हासिल करने में सफल हो गए।
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किसी एक बूथ पर सर्वाधिक मत में आंजना अव्वल
जिले में वर्ष २०१३ के विधानसभा चुनाव में बूथवार मिले मतों का आकलन किया जाए तो किसी एक बूथ पर सर्वाधिक मत पाने वाले प्रत्याशियों में निम्बाहेड़ा में भाजपा के श्रीचंद कृपलानी से तीन हजार से अधिक वोट से चुनाव हारने वाले कांग्रेस प्रत्याशी उदयलाल आंजना अवव्ल रहे। उन्हें बूथ संख्या १७४ पर १०७१ मत मिले जो किसी एक बूथ पर किसी एक प्रत्याशी को मिले सर्वाधिक मत है। जिले में कपासन विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी आरडी जावा ही एकमात्र ऐसे प्रत्याशी रहे जो केवल एक बूथ पर ही ५०० से अधिक मत हासिल कर पाए। शेष सभी क्षेत्रों में कांग्रेस व भाजपा प्रत्याशी कम से कम पांच बूथों पर तो ५०० या उससे अधिक मत पाने में सफल रहे। जावा को कपासन क्षेत्र के बूथ संख्या २२६ से ५१९ मत मिले जो सर्वाधिक रहे।
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बूथ क्षेत्रों पर खास जोर
भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों ने इस बार सर्वाधिक फोकस उन बूथ पर किया है जहां वे पिछली बार प्रतिद्धंदी प्रत्याशी से बहुत अधिक पीछे रहे गए थे। ऐसे क्षेत्रों में संगठन मजबूत बनाने के लिए बूथ प्रभारी से लेकर पन्ना प्रभारी तक का प्रयोग किया गया है। बूथ सम्मेलन भी ऐेसे क्षेत्रों में पहले कराए जा रहे जहां पिछली बार प्रदर्शन बहुत खराब रहा था। वहीं दूसरी तरफ भाजपा व कांग्रेस नेता उन बूथ क्षेत्रों को बचाए रखने के लिए भी सक्रिय है जहां उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा। जिन क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन रहा वहां जीतने या हारने वाले का खास फोकस रहा।
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क्यों मिली कुछ बूथों पर एकतरफा जीत
विधायक चुने प्रत्याशी एवं निकटतम प्रतिद्धंदी के कुछ बूथों पर एकतरफा जीत हासिल करने के पीछे मुख्य कारण ऐसे बूथ का उनके खास प्रभाव क्षेत्र या गृह क्षेत्र का होना भी है। ऐसे में उन बूथों पर एकतरफा वोटिंग हुई। बड़े अंतर वाले बूथ का जातिगत व क्षेत्रगत समीकरण भी अलग रहा। यहां लोगों ने लामबंद होकर किसी एक प्रत्याशी के पक्ष में वोट दिए।
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पांच साल में बदल गए पूरे परिणाम
जिले में वर्ष २००८ एवं वर्ष २०१३ के विधानसभा चुनाव परिणाम पूरी तरह बदल गए। वर्ष २००८ में जहां जिले के सभी पांच विधानसभा क्षेत्रों से कांग्रेस प्रत्याशी जाते तो थे वर्ष २०१३ के चुनाव में इसके बिल्कुल विपरीत परिणाम आए और सभी पांचों सीट भाजपा प्रत्याशियों ने जीत ली। मतदाताओं के इस एकतरफा वोटिंग ट्रेंड ने जिले में दोनों दलों के नेताओं के आशंकित कर रखा है।
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पिछले वधानसभा चुनाव में जिन बूथों पर हमने श्रेष्ठ प्रदर्शन किया उनमें और अधिक बेहतर प्रदर्शन का लक्ष्य रखा है। हम अधिक वोट पाने वाले बूथों पर भी संतुष्ट होकर नहीं बैठे। जिन बूथों पर उम्मीदों के अनुरूप वोट नहीं मिले वहां इसका क्या कारण रहा इसका पता करने का प्रयास किया।
रतनलाल गाडऱी, भाजपा जिलाध्यक्ष, चित्तौडग़ढ़
हर बूथ पर हमारा ध्यान है। पिछली बार चुनाव हारने के बावजूद जहां हमारे प्रत्याशियों ने अच्छे मत प्राप्त किए वहां और जहां पर्याप्त मत नहीं मिल पाए वहां ये जाना कि ऐसा क्यों हुआ। कमजोरियां दूर की और जहां अच्छा आधार है वहां विपक्ष में होने पर भी लोगो की उम्मीदें पूरी करने की कोशिश की।
मांगीलाल धाकड़, कांग्रेस जिलाध्यक्ष, चित्तौडग़ढ़
राजनीतिक दल विकास में समान रवैया नहीं रखते है। जीतने वाले प्रत्याशी का ध्यान उस क्षेत्र पर ज्यादा रहा है जहां उसे अधिक वोट मिले। जिन बूथों पर कम वोट मिले उस क्षेत्र के प्रति रवैया उपेक्षापूर्ण रहता आया है।
मनोज नाहर, व्यवसायी, चित्तौडग़ढ़

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