कोरोना इफेक्ट: बोतलबंद पानी से जुड़े उद्योग की टूटी कमर
कोरोना ने शहर में बोतलबंद पानी को भी खारा कर दिया। इससे जुड़े उद्योगों का कारोबार खासा प्रभावित रहा। बीते आठ माह से विवाह समारोह बंद रहे।

विजय कुमार शर्मा
चूरू. कोरोना ने शहर में बोतलबंद पानी को भी खारा कर दिया। इससे जुड़े उद्योगों का कारोबार खासा प्रभावित रहा। बीते आठ माह से विवाह समारोह बंद रहे। लॉकडाउन में सब कुछ ठप था। परिवहन साधन नहीं चले। धार्मिक आयोजन नहीं हुए। भला ऐसे में बोतल बंद पानी की कहां से खपत होती। साथ ही इससे जुड़े भौगोलिक संसाधनों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा। पिछले वर्ष तक शहर में पांच से छह हजार बोतलबंद पानी की खपत हो जाती थी, वहीं अब यह आधी से भी कम हो गई है। पहले घरों और दफ्तरों में रोज बोतल बंद पानी की सप्लाई के लिए बड़ी संख्या में गाडिय़ों का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन कोरोना काल में लॉक डाउन के दौरान इनकी रफ्तार कम होती गई। इसका रोजगार पर भी काफी प्रतिकूल असर रहा।
श्रमिकों का छिना रोजगार
पहले एक आरओ प्लांट में 10 से 15 श्रमिक काम करते थे। अब वहां 3 या 4 श्रमिकों को ही रोजगार मिल रहा है। इससे बेरोजगारी भी बढ़ गई। मार्च-2020 से लगातार मांग कम होने का असर यह रहा कि बोतलबंद पानी से जुड़े उद्योग की कमर टूटती चली गई।
लॉकडाउन ने छिना निवाला
शहर में आरओ प्लांट के मालिक महावीर सैनी के मुताबिक लॉकडाउन से पहले अच्छी खासी सप्लाई जाती थी, लेकिन मार्च के बाद एकदम कम हो गई या कहें तो बंद सी हो गई। इससे व्यवसाय पर काफी बुरा असर पड़ा है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी नुकसान से उबर नहीं पाए हैं। शहर में 40-50 आरओ प्लांट होने से कमोवेश प्रतिस्पद्र्धा भी ज्यादा रहती है। ऊपर से कोरोना जैसी महामारी आने और लॉकडाउन से सबको ही नुकसान हुआ। इस उद्योग को शुरू करने के लिए उन्होंने करीब 10-12 लाख रुपए लगाए थे, लेकिन मार्च के बाद हालत खराब हो गई। लॉकडाउन के बाद सरकार की ओर से ऋण के शेष रहे डेढ़ लाख रुपए में से 75 हजार की किश्त चुकाने का प्रावधान किया गया, लेकिन उसका भी ब्याज जमा कराना उन्हें भारी लग रहा है।
रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस में प्रति वर्ष होता खर्चा
महावीर सैनी बताया कि शहर में कई आरओ प्लांट बिना लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन के संचालित किए जा रहे हैं, उन्हें कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। इसके इतर जो लाइसेंसधारी हैं, उनके सामने कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ट्यूवबैल के पानी की जांच के लिए सैम्पल भी स्वयं भेजना होता है। टीडीएस 150 से 275 पीपीएम तक रखना होता है। यदि पानी की टीडीएस इस स्तर पर नहीं होता है तो लाइसेंस नवीनीकरण नहीं हो पाएगा। वहीं डीजल, बैंक लोन, सीए और बिल पर जीएसटी का खर्चा, मिलाकर जो कुछ कमाई होती है, उसमें से कुछ बचा पाना बहुत ही मुश्किल हो गया है। लाइसेंस नवीनीकरण और पानी की जांच में तीन से पांच हजार रुपए तक खर्च हो जाते हैं, इसे निकाल पाना मुश्किल हो रहा है।
श्रमिक हो गए ठाले, मालिक लाचार
महावीर सैनी ने बताया कि शहर में आरओ प्लांट में काम करने वाले कई श्रमिक और कर्मचारी कोरोना की मार से बेरोजगार हो गए। प्लांट मालिक भी लाचार नजर आने लगे। पहले एक प्लांट में 10-15 कर्मचारी या इससे अधिक भी काम कर रहे थे, अब 3-4 कर्मचारियों से काम चलाना पड़ रहा है। पहले बिजली का बिल दो माह का 40 से 45 हजार या इससे ज्यादा आता था, लेकिन अब दो माह का बिल 11-12 हजार रुपए तक आता है। इसका कारण है मांग कम होने से बिजली की खपत भी कम हो गई।
100 से नीचे टीडीएस का पानी सेहत के लिए नुकसानदायक
शहर में कई आरओ प्लांट वाले 70-90 तक टीडीएस का पानी बाजार में सप्लाई कर रहे हैं। यह सेहत के लिए नुकसानदायक है। पानी का टीडीएस 150 से ऊपर ही होना चाहिए। उन्होंने बताया कि प्लांट के मैंटेनेंस और बिजली बिल, श्रमिकों का खर्चा आदि निकालना दूभर हो गया है। फैक्ट्रियां बंद, स्कूल बंद, इंस्टीट्यूट बंद, तो धंधा बंद। एक आरओ प्लांट के मलिक प्रभु सिंह ने बताया कि शहर में सभी कोचिंग संस्थान, स्कूल और अन्य ऑफिस बंद हो जाने से बोतलबंद पानी की बिक्री पर काफी खराब असर पड़ा। सप्लाई आधी से कम रह गई। पहले 10-15 कर्मचारी थे। अब खर्चों में कटौती करने के लिए तीन-चार श्रमिक ही काम कर रहे हैं।
पहले और अब आरओ प्लांट का गिरता ग्राफ
* शहर में कुल आरओ प्लांट- 50 से 60
* पहले होती थी सप्लाई- 5 से 6 हजार बोतल (प्रतिदिन)
* पहले काम करते कर्मचारी- 10-15 (प्रति प्लांट)
* पहले आता था बिजली का बिल- करीब 40 से 50 हजार रुपए (दो माह)
* लॉकडाउन के बाद की सप्लाई- 2 से ढाई हजार बोतल (प्रतिदिन)
* रोजगार में आई कमी- 3 से 4 श्रमिक (प्रति प्लांट)
* पानी की खपत रह गई 1000 से 1200 लीटर (प्रतिदिन)
* लॉकडाउन के बाद बिजली का बिल- 11-12 हजार रुपए (दो माह)
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