जगदीश प्रसाद ने बताया कि वे दिल्ली में एक प्लास्टिक फैक्ट्री में अकाउंटेंट कम मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। 12 साल पहले जांच में उन्हे मुंह का कैंसर बताया गया। इसके बाद उन्होंने करीब एक साल तक दवा की और कीमो लगवाए। लेकिन सही नहीं हो रहा था। इस पर उन्होंने रोहतक पीजीआई में ऑपरेशन करवा लिया। 2005-06 में उनका ऑपरेशन हो गया। इसके कुछ दिन बाद वे देशी दवा का उपयोग करने लगे। उन्होंने बताया कि हीरे से बनी हीरक भस्म नामक दवा का सेवन करने लगे। इस दवा को उन्होंने वर्ष 2014-15 तक लेते रहे। दो रत्ती दवा करीब 40 हजार रुपए की पड़ती थी। 2015 के बाद से यह दवा बंद कर दी। अब वे पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं। अब वे गांव में घर पर ही एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। परिवार में वे और उनकी पत्नी है। उस दुकान से ही अपना जीवन-यापन करते हैं।
पर्यावरण को बढ़ावा देने के लिए कर रहे काम
बीमारी से लड़ाई के साथ जगदीश ने पेड़-पौधों की सेवा करना अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया। शर्मा ने गांव की श्मशान भूमि परसानिया में कुछ साल पहले दो सौ पौधे लगाए जिसमें सौ पौधे आज तैयार हो चुके हैं। 50 काफी बड़े हो गए हैं और 50 अभी कुछ छोटे हैं। शर्मा नियमित रूप से सुबह दो घंटे श्मशान भूमि में जाकर पौधों की देखरेख करते हैं। इतना ही नहीं शर्मा अपने निजी खर्चे पेड़ों में कीटनाशक दवा व पानी के टैंकर मंगवाकर सिंचाई करते हैं।