बेटियों को कहां भेजे
परिजनों ने बताया कि गांव में 10वीं तक का केवल एक स्कूल है। 10वीं कक्षा की बेटियों को बाहर दूसरे गांव कहां भेजे। स्कूल नजदीक देखकर इस स्कूल में भेजे थे। इस कक्षा में कुल सात बेटियां थी लेकिन एक भी पास नहीं हुई।
छात्रों की जुबानी
”आध्यापक को पढ़ाने के लिए हम बुलाने जाते थे लेकिन मास्टर समय पर कक्षा में पढ़ाने नहीं आते जिसके कारण गणित व संस्कृत का कोर्स पूरा नहीं हो सका।”
कविता, छात्रा, गांव कातर बड़ी
”बच्चे घर पर केवल लिखित होम वर्क करते थे। पूछने पर बताते की हमे कहा गया है डेस्क व सजीव पास बुक से देखकर लिखने का होम वर्क करो। ”
राजूराम नायक, गांव कातर बड़ी, फेल निरमा का भाई
”बच्चे तो समय पर स्कूल जाते थे लेकिन इस स्कूल में केवल लिखित होमवर्क देते थे, पढ़ाई कम करवाते थे। एक बार आरटीआई कार्यकर्ता ने शिकायत की थी लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा।”
कालूराम नायक, कातर बड़ी, फेल कुमारी मनोज का भाई
”मेरे विषय मे नौ में से 5 पास व 4 फेल हुए हैं फेल होने वाले भी बहुत कम नम्बरों से फेल हुए। 33 से पास होते हैं अधिकतर के 31 या 32 आए हैं। हमने बहुत मेहनत करवाई थी उसको तीन वर्ष हो गए यहां पहले सभी सत्रों में परिणाम ठीक रहा। इस बार कॉपी जांच में कुछ गलती लग रही है। ”
सन्तलाल, अध्यापक, विज्ञान
”बच्चों का स्तर बहुत कमजोर था मैं पिछले वर्ष जून में यहां आया अतिरिक्त कक्षाएं लगाकर पढ़ाई में सुधार किया। 9 में से से सात पास हुए और दो फेल हुए।”
विजयसिंह, अध्यापक, विषय अंग्रेजी
”मेरी बेटी निरंतर स्कूल जाती थी। घरेलू काम भी हम ज्यादा नहीं करवाते थे। हमे लगता है कि पढ़ाई की कमी के कारण लड़की सप्लीमेंट्री आ गई”
कालूराम नायक, कातर बड़ी, फेल कुमारी मनोज के पिता
जिम्मेदारी अधिक होने से बाधित हुई पढ़ाई ”मेरे पर जिम्मेदारी अधिक होने के कारण कोर्स पूरा नहीं करा सके। बीएलओ, एपीईईओ, प्रधानाध्यापक आदिकी जिम्मेदारियां होने के कारण समय पर कोर्स नहीं करा सका। अन्य अध्यापकों के विषयों का रिजल्ट 60 प्रतिशत से ऊपर रहा है। शिक्षा अधिकारी ने खुद जानकारी ली थी।”
रेवंतराम गोदारा, कार्यवाहक प्रधानाध्यापक, राजकीय आदर्श माध्यमिक विद्यालय, कातर बड़ी