लोगों ने उसकी पत्नी शहनाज (संजू) और अन्य परिजनों को ढांढ़स बंधाया। डेढ़ साल के पुत्र अलफाज को भी उनके अंतिम दर्शन कराए। शहीद पिता के अनायास ही छोडकऱ चले जाने पर नन्हे पुत्र अल्फाज की आंखों से भी आंसू छलक पड़े। इस दौरान भाजपा नेता रामसिंह कस्वा, एएसपी प्रकाश कुमार शर्मा, गोविंद महनसरिया, रणजीत सातड़ा, सुजानगढ़ प्रधान गणेश ढाका, एसडीएम श्वेताकोचर, महावीर नेहरा, शेरखान मलकाण, दिलावर खान सहित हजारों लोगों ने शहीद को श्रद्धांजलि दी।
शाम को सात बजे पहुंची पार्थिव देह
सेना के जवान शहीद असलम खान दौलतखानी की पार्थिव देह शाम करीब सात बजे लेकर गांव पहुंचे। गांव के बस स्टैण्ड से युवा मोटरसाइकिल से तिरंगा यात्रा निकाली और भारत माता के जयकारों से गांव को गुंजायमान कर दिया। इस दौरान घर में मातम का माहौल हो गया और परिजन फूट-फूट कर रोने लगे। आस-पास के लोगों ने उन्हें ढांढ़स बंधाया। यहां मौजूद लोग भी भावुक हो गए और अपनी आंखों के आंसू नहीं रोक पाए।
नौ भाई बहनों में सबसे छोटे थे असलम
गांव के लोगों ने बताया कि राणासर के लाल असलम खान परिवार में नौ भाई-बहनों में सबसे छोटा था। 1999 में वे सेना में भर्ती हुए थे। 40 साल के असलम खान 24 राष्ट्रीय रायफल में दो साल से जम्मू कश्मीर में तैनात थे। श्रीनगर में उनकी पोस्टिंग की गई थी।
बचपन में उठ गया था पिता का साया
लोगों ने बताया कि जिस समय असलम छोटे थे तो उनके पिता हासम खान का देहांत हो गया था। उनकी मां कलसुम ने ही उनकी परवरिश की और उन्हें सेना में भर्ती कराया। असलम की पत्नी शहनाज (संजू) गृहिणी है। शहीद के तीन बेटी व एक बेटा है। सबसे बड़ी बेटी मुस्कान (14) कक्षा 11 में बिसाऊ व सकीना (11) राणासर के एक निजी स्कूल में पढ़ती है। तीसरी बेटी सादिया (6) यूकेजी में व डेढ़ साल का बेटा अलफाज घर पर मां शहनाज बानो (संजू) के साथ ही रहता हैं। इस दौरान गांव के प्रत्येक व्यक्ति ने शहीद के अंतिम दर्शन किए। लोग अपने-अपने आंसू भी नहीं रोक पाए।
अगस्त में छुट्टी बीताकर लौटे थे
असलम अगस्त माह में एक माह की छुट्टी बीताकर वापस लौटे थे। परिजनों ने बताया कि 17 सितम्बर को उसके भतीजे शाहरूख की शादी है। असलम छुट्टी लेकर शादी में शरीक होने की बात कहकर गया था। लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। वे 1999 में अहमद नगर ऑर्मड सेंटर में भर्ती हुए थे।
बचपन से था देश सेवा का जज्बा
असलम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में रहकर ही की। बचपन से ही उनके दिल में देश की सेवा करने का जज्बा कूट-कूटकर भरा हुआ था। इसी की बदौलत वे कठिन परिश्रम कर सेना में भर्ती हुए और देश की सेवा करते-करते उन्होंने प्रोणोत्सर्ग कर दिए। जानकारी के मुताबिक असलम अपने परिवार में सबसे छोटे थे। सबसे बड़े भाई बाबू खां, फिर लियाकत खां और सत्तार खां, बहनों में सबसे बड़ी सनावर बानो, दूसरे नंबर पर नूर बानो, तीसरे नंबर पर बलकेश बानो, चार नंबर गुड्डी बानो और सबसे छोटी सहनाज बानो हैं। असलम सबसे छोटे थे।
स्कूल जाते समय बेचते थे दूध
असलम परिवार में सेवाभावी थे। वे बचपन से ही सहयोगी की भूमिका निभाते आ रहे हैं। घर का दूध बेचने का काम था। पढऩे जाते समय वे उपभोक्ताओं का दूध लेकर जाते थे। लोगों को दूध सप्लाई कर फिर स्कूल पहुंच जाते थे।