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चुरू

सर्दी में तिल्ली का तेल रामबाण समान

अब तीखी सर्दी का दौर शुरु हो गया है। हल्दी, गाजर का हलवा, दाल हलवे की गोठों के नजारे इन दिनों नजर आने लगे हैं।

चुरूNov 27, 2020 / 02:10 pm

Madhusudan Sharma

सर्दी में तिल्ली का तेल रामबाण समान

सर्दी में तिल्ली का तेल रामबाण समान

सुजानगढ़. अब तीखी सर्दी का दौर शुरु हो गया है। हल्दी, गाजर का हलवा, दाल हलवे की गोठों के नजारे इन दिनों नजर आने लगे हैं।। वहीं गांवों में सैंधाणे की सुगंध के साथ बाजरे के स्वादिष्ट व्यंजन थाली की शोभा बन रहे हैं। तो तिल के व्यंजनों की भी बहार है। तिल न केवल खाने में स्वादिष्ट होते हैं।, बल्कि सेहतमंद भी होते हैं। तिल और इसके तेल से सब परिचित हैं।। जाड़े में तिल का तेल बाजरे की रोटी व खीचड़ी के साथ खूब खाया जाता है। खासकर ग्रामीण क्षेत्र में तो लोग इसे बड़े चाव से खाते हंै। इन दिनों सर्दी बढऩे के साथ ही गांवो में तिल्ली के तेल की मांग बढऩे लगी है।क्षेत्र में 500 क्विंटल का निकलता है तेल आस-पास के चार दर्जन गांंवों सहित शहर में इन दिनों तेल निकलवाने के लिए बड़ी संख्या में आवाजाही देखी जा रही है।
घाणी का तेल अधिक पसंद
शहर के आसपास गांवों में कोई मशीन घाणी नहीं है। रेलवे फाटक नं.1 के सामने बाइपास सड़क पर स्थित बड़ी घाणी के मालिक रतनलाल नाथ ने बताया कि शहर में तेल निकालने की 8 छोटी व एक बड़ी घाणियां हैं। सर्दी की सीजन में एक घाणी पर 50 से 70 क्विंटल तिल्ली का तेल निकाला जाता है। वहीं पूरे क्षेत्र में करीब 500 क्विंटल तेल निकाला जा रहा है।
पोषक तत्वों का भंडार है तिल
तहसील वैद्य सभा के अध्यक्ष घेवरचंद गुर्जर ने बताया कि आयुर्वेद में तिल को सर्वश्रेष्ठ औषधि बताई है, क्योंकि तिल का कई औषधियों के निर्माण में ज्यादा प्रयोग होता है। तिल तीन प्रकार के होते हंै सफेद, लाल एवं काला। इनमें कैल्शियम काफी होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। तिल के तेल में मैग्नीशियम, प्रोटीन, फास्फोरस, ओमगा-3, विटामिन-सी,ई,के, विटामिन बी-6, तांबा, आयरन, लाइपेज, सिसेमोलिन, जिंक जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते है। जो शरीर को ताकत प्रदान करते है। सर्दियों में तिल का नियमित सेवन से दिमाग की कोशिकाएं और मांसपेशियां हमेशा एक्टिव रहती है।
अब नहीं रही परंपरागत घाणी
औद्योगिकीकरण एवं मशीनों के युग में कुटीर उद्योगों पर गहरी चोट हुई है। ग्रामीण अंचलों में परंपरागत उद्योग समाप्त होने के कगार पर है। इसके बावजूद भी परंपरागत घाणी (कोल्हू) के तेल की मांग अब भी गांवों में है। इन दिनों क्षेत्र के बाजारों में तेल निकालने वाली विद्युत संचालित घाणियां शुरु हो गई है। पहले यहां बैल से घाणी चलाई जाती थी। लकड़े के बने अंग्रेजी के यूं आकार के ढांचे में तिल की पिसाई कर तेल निकाला जाता था। तिल से तेल निकलने के बाद खल बची रहती थी। उस तेल का स्वाद कुछ अलग ही था, लेकिन लघु उद्योग को सरकार से प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण समय के साथ यह लुप्त हो गया। मशीनीकरण में यह घाणी भी आधुनिक हो गई।

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