गांव की बेटियां नेशनल खेली,अब सहेलियों को कर रही हैं ट्रेंड
कहते हैं ना कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। जब दिल में हो कुछ कर गुजरने का जज्बा तो उसे कोई रोक नहीं सकता। जी हां, हम बात कर रहे हैं 2 ऐसी ग्रामीण खेल प्रतिभाओं की जिन्होनें कड़ी मेहनत व होंसलों के बूते अपने गांव की मिट्टी की खुशबू को देश भर में बिखेरा है।
गांव की बेटियां नेशनल खेली,अब सहेलियों को कर रही हैं ट्रेंड
सुजानगढ़ (ग्रामीण). कहते हैं ना कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। जब दिल में हो कुछ कर गुजरने का जज्बा तो उसे कोई रोक नहीं सकता। जी हां, हम बात कर रहे हैं 2 ऐसी ग्रामीण खेल प्रतिभाओं की जिन्होनें कड़ी मेहनत व होंसलों के बूते अपने गांव की मिट्टी की खुशबू को देश भर में बिखेरा है। बचपन से ही कुछ ऐसा कर गुजरने की तमन्ना थी सुजानगढ़ पंस के गांव मलसीसर की 11 वीं में अध्ययनरत प्रियंका गंगाणी की। जिससे की उनके गांव का नाम रोशन हो। स्कूल में गुरुजनों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना व ट्रेंड करना शुरु किया। दोनों ही छात्राओं ने जिला स्तर व प्रदेश स्तर पर अपने खेल का लोहा मनवाया तो उनका चयन राजस्थान की हॉकी टीम में हुआ। वर्ष 2019 में झारखंड के रांची में हुई 65 वीं नेशनल हॉकी प्रतियोगिता में अंडर 19 आयु वर्ग में टीम क्वार्टर फाइनल तक पहुंची। प्रस्तुत है पत्रिका से बातचीत के प्रमुख अंश-
सवाल – आपने खेल को कैसे चुना ?
जवाब :- पापा इलेक्ट्रिक मिस्त्री का काम करते हैं। हम 4 भाई ***** हैं। बचपन से ही कुछ बनने की इच्छा थी। पापा ने इनकरेज किया। स्कूल में पीटीआई सर व प्राचार्य जी ने मेरी प्रतिभा को पहचाना। हॉकी खेलना सिखाया।
सवाल – नेशनल तक का सफऱ कैसे तय किया ?
पीटीआई सर देवेंद्र खुड़ीवाल के साथ गांव में ही हमारी स्कूल के खेल मैदान पर एक साल तक कड़ी मेहनत की। पापा ने भी पूरा सहयोग किया। जिला स्तर पर स्कूल की टीम विजेता रही। स्टेट लेवल की टीम में चयन हुआ। वहां पर प्रदर्शन अच्छा रहा। चयनकर्ताओं ने राजस्थान की टीम के लिए सिलेक्ट किया। कोच के साथ खूब मेहनत की। हॉकी की बारिकियां समझी। वर्ष 2019 में झारखंड के रांची में हुई 65 वीं स्कूल स्तरीय खेल प्रतियोगिता में 19 वर्ष आयु वर्ग में राजस्थान की टीम में खेलने का मौका मिला। हमारी टीम क्वार्टर फाइनल तक पहुंची।
सवाल – आगे का क्या सपना है ?
जवाब – अब तो एक ही सपना है कि देश के लिए खेलें व गोल्ड मेडल जीते ताकि हमारे गांव व प्रदेश का नाम उंचा हों।
सवाल – अब गांव में कैसे खेल को निखारती हो ?
जवाब – स्कूल के पास ग्राम पंचायत की ओर से करीब 10 लाख खर्च करके खेल मैदान व रनिंग ट्रेक बनाया गया है। वहीं रोजाना सुबह – शाम अभ्यास करते हैं। हमारे कोच मदद करते हैं।
सवाल – ग्रामीण स्तर पर कितना कठिन होता है अपनी प्रतिभा को पहचान दिलाना ?
जवाब – बहुत ही कठिन होता है ये सब। खास कर बेटियों के लिए। संसाधनों का अभाव व पैसे की कमी। उसके बाद अच्छा कोच मिलना। शहरों के मुक़ाबले गांवों में बहुत दिक्कत आती है। इसलिए खेल में रुचि रखने वाली हमारी सहपाठी छात्राओं को हॉकी खेल सीखा रही हैं।
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