तीर्थंकरों का पुण्य जगत के लिए हितकारी कोयम्बत्तूर. जैन आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि हर पुण्य का उदय हमें फायदा ही करे ऐसा निश्चित नहीं है। पुण्य का उदय कभी पाप का भी कारण बन सकता है। धन की प्राप्ति पुण्य के उदय से होती है लेकिन धन प्राप्त कर व्यक्ति शिकार, जुआ या अन्य पापकारी प्रवृत्ति में जुड़े तो पाप कर्म के बंधन का कारण बन सकता है।
वे शुक्रवार को
Coimbatore बहुफणा पाश्र्व जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में Coimbatore राजस्थानी संघ भवन Rajasthani sangh bhawan में चल रहे चातुर्मास धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शारीरिक शक्ति व निरोगी काया पुण्य के उदय से होती है लेकिन शक्ति को पाकर व्यक्ति हिंसा, कठोरता, निर्दयता व लोगों का शोषण करता है तो ऐसी शक्ति पाप का बंधन करती है।
आचार्य ने कहा कि सुंदर रूप ,मधुर कंठ ,आकर्षकता पुण्य से प्राप्त होती है लेकिन यह वेश्या को प्राप्त होता है तो पाप का बंधन होता है।
आचार्य ने कहा कि हर पुण्य कर्म स्व -पर को लाभ करे यह निश्चित नहीं है ,जबकि एक तीर्थंकर नाम कर्म का पुण्य ,स्वयं के लाभ के साथ जगत के जीवों का आत्म कल्याण करता है।
आचार्य ने कहा कि तीर्थंकर जब माता के गर्भ में आते हैं तब माता को विशिष्ट प्रकार के १४ महास्वप्न आते हैं। जन्म के बाद करोड़ों देवता परमात्मा को मेरू पर्वत पर ले जाकर करोड़ों कलशों से जन्माभिषेक करते हैं। जन्म के समय माता को भी पीड़ा नहीं होती। दीक्षा, केवल ज्ञान और निर्वाण के समय असंख्य देवता उनकी सेवा करते हैं। उनका आंतरिक ज्ञान विशिष्ट है।
मुनि ने कहा कि केवल ज्ञान की प्राप्ति के बाद पूर्व जन्म की शुभ भावना व अपार करुणा से जगत के जीवों का आत्म कल्याण करने के लिए प्रतिदिन दो प्रहर की धर्म देशना देते हैं। हमारे मन में पैदा होने वाला शुभ भाव धर्म देशना के कारण ही है।
आचार्य ने कहा कि परमात्मा अपनी धर्म देशना से आत्मा की शक्ति व समृद्धि का बोध देते हैं। दुनिया की प्रत्येक शक्ति समृद्धि इसके आगे तुच्छ लगती है।
उन्होंने कहा कि विज्ञान कितनी ही तरक्की कर ले लेकिन आत्मा की शक्ति के आगे विज्ञान अति न्यून है। २१ जुलाई को भाव वाही कार्यक्रम जब प्राण तन से निकले की प्रस्तुति चेन्नई के मनोज मोहन की ओर से दी जाएगी।
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