जितना मौका मिले उसे धर्म में लगाएं
संसार के इस दानावल में मनुष्य इस प्रकार फंस चुका है कि वह बाहर निकलने का प्रयत्न ही नहीं कर रहा। वह समझ रहा है अभी कमा लूं अर्थ, बाद में कर लूंगा धर्म। अब मनुष्य स्वयं को भविष्यवेत्ता समझने लगा है। जो मृत्यु का वरण तीर्थंकर, गणधर नहीं कर पाए उसका वरण आज के मानव ने कर लिया। तभी वह कहता है, आज नहीं बाद में कर लेंगे।
कोयंबटूर•Sep 19, 2019 / 02:40 pm•
Dilip
जितना मौका मिले उसे धर्म में लगाएं
कोयम्बत्तूर. संसार के इस दानावल में मनुष्य इस प्रकार फंस चुका है कि वह बाहर निकलने का प्रयत्न ही नहीं कर रहा। वह समझ रहा है अभी कमा लूं अर्थ, बाद में कर लूंगा धर्म। अब मनुष्य स्वयं को भविष्यवेत्ता समझने लगा है। जो मृत्यु का वरण तीर्थंकर, गणधर नहीं कर पाए उसका वरण आज के मानव ने कर लिया। तभी वह कहता है, आज नहीं बाद में कर लेंगे।
पल का ठिकाना नहीं, अतीत की तो बात ही क्या करें। भगवान ने तो यहां तक कह दिया कि क्षण मात्र के प्रमाद से भव न बिगड़ जाए। पल का भी मौका मिले तो उसे धर्म में लगाना चाहिए।
ये बातें मुनि हितेशचंद्र विजय ने मंगलवार को आर जी स्ट्रीट स्थित सुपाश्र्वनाथ जैन आराधना भवन में चल रहे चातुर्मास कार्यक्रम के तहत धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि जीवन क्षण भंगुर है। कितने ही बड़े लोग राम, कृष्ण, महावीर व बुद्ध अवतारी तीर्थंकर व सिद्धपुरुष् हुए लेकिन किसी न किसी कारण से आज वह हमारे बीच में नहीं हंै। इन संतों ने ऐसे कार्य किए जो आज अंतर्मन से हम उन्हें याद करते हैं। भगवान हर रूम में विद्यमान हैं लेकिन हम उन्हें देख नहीं पा रहे।
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार एक छोटा बच्चा अपनी मां की गोद में स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। माता उसे चम्मच में कुछ भी पिला देती है वह मुंह खोलता है और पी लेता है। इसी प्रकार हमें ईश्वर पर पूर्ण भरोसा रखना है। परमात्मा ने जिस अवस्था में हमें रखा है उसी अवस्था में संतोष मानना ही सच्चा कार्य है।
हमें यह विचार करना है कि परमात्मा ने अब तक जो मांगा दिया, अब तो मेरा मांगना रुकता नहीं और आपका देना रुकता नहीं। बहुत पा लिया क्या मांगना था और क्या मांग लिया, पर मनुष्य तो धन के लोभ में अभिमानी ईष्र्यालु व कपटी बन गया फिर भी प्रभु की कृपा बरकरार रही।
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