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कोयंबटूर

व्यवहार को श्रेष्ठ बनाने के जतन जरूरी

आत्म शक्ति के दुरुपयोग से अनादि काल से संचित अशुभ कर्मों से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय सिद्धचक्र आराधना है। समय रहते जाग्रत होकर अपनी विशुद्ध आत्मा को शुद्ध बनाने सतत् प्रयत्न शुरू कर देना चाहिए।

कोयंबटूरOct 12, 2019 / 01:10 pm

Dilip

व्यवहार को श्रेष्ठ बनाने के जतन जरूरी

व्यवहार को श्रेष्ठ बनाने के जतन जरूरी

कोयम्बत्तूर. आत्म शक्ति के दुरुपयोग से अनादि काल से संचित अशुभ कर्मों से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय सिद्धचक्र आराधना है। समय रहते जाग्रत होकर अपनी विशुद्ध आत्मा को शुद्ध बनाने सतत् प्रयत्न शुरू कर देना चाहिए। अन्यथा भव का परिभ्रमण बढ़ जाएगा। पुण्य से मिले आत्म बल का सदुपयोग करते हुए अपने व्यवहार को श्रेष्ठ बनाने का जतन करें।
यह बात जैन मुनि हितेशचंद्र विजय ने कही। वे यहां आरजी स्ट्रीट स्थित जैन आराधना भवन में चातुर्मास कार्यक्रम के तहत धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने नवपद ओली आराधना का महत्व बताते हुए कहा कि भव यात्रा तो हमने कई कर ली अब भाव यात्रा का समय है। परिभ्रमण से बचना ही मानव जीवन की वास्तविक सफलता है।
उन्होंने कहा कि भौतिक सुखों की चकाचौंध में माया जाल व व्यर्थ के प्रपंचों में जीवन को व्यर्थ नहीं करना है। बल्कि आत्म दर्शन के अनूठे बल से आनंद का अनुभव प्राप्त करना है। जो आत्मार्थी मानव होता है वह भोग, रोग व शोक के समय केवल आत्मा के बारे में सोचता है। रोग की चिंता नहीं करता सिर्फ चिंतन में लगा रहता है। उसने पूर्व में किसी को दुख दिया होगा इसलिए आज उसे यह पीड़ा भोगनी पड़ रही है। इस रोग का शोक करके मुझे अपनी आत्मा का पतन नहीं करना है। काया नश्वर है आत्मा तो अमर है। जिस प्रकार समुद्र के जल में कुछ जीव उसका पानी नहीं पीते वरन मीठे जल की तलाश में रहते हैं उसी प्रकार संसार में रहते हुए भौतिकता से परे रहने का प्रयास करना चाहिए। लोभ का त्याग कर धर्मलाभ प्राप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए।

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