चिन्नातम्बी को काबू करने वाली वन विभाग की टीम पुरस्कृत
जनवरी -फरवरी माह में कोयम्बत्तूर इलाके में किसानों और ग्रामीणों के लिए सिरदर्द रहे जंगली हाथी चिन्नातम्बी को अपने कौशल से पकडऩे वाली वन विभाग की टीम को मंगलवार को चेन्नई में आयोजित समारोह में सम्मानित किया गया।
कोयंबटूर•Oct 09, 2019 / 01:21 pm•
Dilip
चिन्नातम्बी को काबू करने वाली वन विभाग की टीम पुरस्कृत
कोयम्बत्तूर. जनवरी -फरवरी माह में कोयम्बत्तूर इलाके में किसानों और ग्रामीणों के लिए सिरदर्द रहे जंगली हाथी चिन्नातम्बी को अपने कौशल से पकडऩे वाली वन विभाग की टीम को मंगलवार को चेन्नई में आयोजित समारोह में सम्मानित किया गया।इसे पहली बार 25 जनवरी को पकड़ कर दूर जंगल में छोड़ दिया गया पर यह लम्बी यात्रा के बाद पुराने ठिकाने की ओर आ गया। दूसरी बार इसे 15 फरवरी को पकड़ा और काठ के पिंजरे में कैद कर दिया गया।
हाथी को पकडनेे वाली टीम में कोयम्बत्तूर तिरुपुर , पोलाची सहित तीन डिवीजनों के अधिकारी और कर्मचारी शामिल थे।टीम ने लगातार 10 दिन तक हाथी का पीछा कर पकडऩे में सफलता हासिल की। थी। 25 जनवरी को करीब छह घंटे चले इस ऑपरेशन में विभाग के चार प्रशिक्षित हाथियों, वन विभाग के 40 अधिकारी व कर्मचारियों ने भाग लिया। इसे बेहोश करने के इंजेक्शन दिए गए। नशे से शिथिल होने के बाद रस्सों से इसे बांधा ग या। प्रशिक्षित हाथियों ने उसे लॉरी की ओर धकेला। वहां रस्सों से जकड़ कर इसे रेडियो कॉलर लगाया और पोल्लाची के घने जंगल में ले जाकर छोड़ दिया।२५ जनवरी को इसे पकड़े जाने के बाद वन विभाग ने चैन की सांस ली, लेकिन चार-पांच दिन तो चिन्नातम्बी जंगल में रहा। इसके बाद बाहर का रास्ता पकड़ लिया। 31 जनवरी को यह अंगलाकुरीची गांव में जा पहुंचा। गांव के बाहर जंगली हाथी को देख लोगों ने इसे वापस जंगल में खदेडऩे के लिए शोर मचाना शुरु किया। पटाखे छोड़े। लेकिन यह आसपास ही घूमता रहा। बाद में भीड़ से बचने के लिए गांव में जा घुसा और गलियों में घूमने लगा। सोशल मीडिया पर इसका वीडियो भी वायरल हुआ था। इस सबके बाद भी चिन्नातम्बी हमलावर नहीं हुआ था। उदुमलपेट इलाके में १५ फरवरी को करीब सात घंटे चले ऑपरेशन के बाद इसे दूसरी बार पकड़ा गया।हालांक चिन्नातम्बी के समर्थन में लोगों ने प्रदर्शन तक किया था। दूसरी ओर खेतों में फसल को नुकसान पहुंचाने के कारण किसान इसे पकडऩे के लिए दबाब डाल रहे थे। हाई कोर्ट ने भी हाथी को पकडऩे के आदेश दिए थे। इससे वन विभाग का काम आसान हो गया था।
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