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आपकी तरह अब कंप्यूटर भी सोचेगा और देखेगा सपने!

इंदौर के तीन युवा वैज्ञानिकों ने किया शोध, पेटेंट के आवेदन स्वीकार, अगले जर्नल में होगा प्रकाशन

Aug 01, 2015 / 10:05 am

Anil Kumar

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नई दिल्ली। इंसान की तरह अब कम्प्यूटर भी सपने देखेगा। यूजर के कमांड पर काम करने वाला कम्प्यूटर ऑन होने के साथ ही विविध विषयों पर सोचने लगेगा। वह एक विषय से जुड़ी तमाम जानकारियों को इकट्ठा कर वर्चुअल डाटा सुरक्षित रखेगा। इससे यूजर के एक क्लिक पर वेब पर मौजूद विषय संबंधित तमाम जानकारियां नैनो सेकंड में स्क्रीन पर होंगी। इंदौर के एक प्रोफेसर व दो युवा वैज्ञानिकों ने अपनी नई तकनीक “न्यूरो डीएफएस कम्प्यूटर ड्रीमिंग सिस्टम: अ वर्चुअल डाटा जनरेशन एंड मैथर्ड ऑफ न्यूरल नेटवर्क” के जरिए यह मुकाम हासिल किया है। इसके पेटेंट के आवेदन भी इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी इंडिया ने स्वीकार कर लिए हैं। अगले जर्नल में उनका यह पेटेंट प्रकाशित होगा।



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तीन वैज्ञानिकों ने बनाया
मेडिकैप्स इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट में प्रोफेसर डॉ. पंकज दशोरे, सुदामानगर के सुयश व सुयोग दीक्षित ने अपने शोध से नजीर बनाई। तीनों वैज्ञानिकों ने मानव मस्तिष्क में मौजूद लाखों न्यूरॉन को आधार बनाया और हर कंप्यूटर को एक न्यूरॉन मान लिया। कॉलेज के 100 कम्प्यूटर के साथ उन्होंने न्यूरल नेटवर्क और जेनेटिक अल्गोरिथम के जरिए कम्प्यूटर को सोचने की शक्ति दे दी।





न्यूरल नेटवर्क?
मानव: इनसानी दिमाग में करोड़ों न्यूरॉन होते हैं। इनकी वजह से ही मानव सपने देखता है।

कम्प्यूटर: हर कम्प्यूटर को एक न्यूरॉन माना। मानव दिमाग की तरह दुनियाभर के कम्प्यूटर को चंद सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर को अपग्रेड कर जोड़ दिया। इससे उनमें सोचने की शक्ति आ गई।




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जेनेटिक अल्गोरिथम?
मानव: मानव में कई पीढियों की जानकारियां रिकॉल की क्षमता होती है।

कम्प्यूटर: कम्प्यूटर पर अनगिनत डाटा होता है। समय के साथ पुराने होने पर इसे रखने में समस्याएं होती हैं। ऎसे में रिकॉल करना भी कठिन होता है। इसलिए मानव की तरह ही जेनेटिक अल्गोरिथम थ्योरी के मुताबिक डाटा को छोटा व नया करने की शक्ति मिली।

नासा में आया आयडिया : गूगल डेवलपर ग्रुप के सेंटल इंडिया के हेड सुयश को नासा में काम करने के दौरान आयडिया आया कि कम्प्यूटर भी इंसान की तरह सोच सकता है।

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