नई दिल्ली। सबा ने यहां, खेलों में नई सोच पर एक चर्चा में भारतीय खेलों में खेल लीगों के बढ़ते प्रभाव और नए बदलाव पर अपने विचार रखते हुए कहा, उस समय जब मैं चयनकर्ता बना था तो हमारे पास 2011 की विश्व कप विजेता टीम थी।
हमने 2011 से 2012 तक तीन विदेशी दौरे किए जहां हमारा अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा। जब हमें चयन समिति की जिम्मेदारी मिली थी तो हमें देखना था कि हमें आगे क्या करना है। हमने टेस्ट, वनडे और टी-20 में नंबर वन बनने के लक्ष्य निर्धारित किए थे।
खेलों में नई सोच चर्चा का आयोजन प्रो कुश्ती लीग के प्रमोटर प्रो स्पोर्टीफाई ने किया जिसमें समाज के विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर पूर्व भारतीय विकेटकीपर ने कहा, 2012 में इंग्लैंड के दौरे में 1-0 की बढ़त बनाने के बाद हम सीरीज 1-2 से हार गए थे।
इस हार ने हमें गहरा झटका दिया और यह सोचने पर मजबूर किया कि नंबर वन बनना है तो हमें परिवर्तन करने होंगे। हमारे पास बेहतरीन खिलाड़ी थे लेकिन उनमें फिटनेस की कमी थी।
फिर हम ऐसे खिलाड़यिों को टीम में लाए जो ज्यादा दक्ष नहीं थे लेकिन फिटनेस में वे बेहतरीन थे। हमने फिट खिलाडिय़ों को टीम में शामिल करने के लिए समयबद्ध तरीके से सीनियर खिलाडिय़ों को बाहर किया और हमारे इस फैसले का सीनियरों ने भी स्वागत किया था।
अगर आप आज देखें तो कप्तान विराट कोहली फिटनेस में परफेक्शन रखते हैं और वह साथी खिलाडिय़ों के सामने फिटनेस का उदाहरण भी रखते हैं।
करीम ने साथ ही देश में इस समय चल रही कई मौजूदा लीगों को खेलों के प्रति एक अच्छी पहल बताते हुए कहा, यह देखकर अच्छा लगता है कि इस समय देश में कई लीग खेली जा रही हैं। लेकिन हमारे लिए इसमें सबसे बड़ी सोचने वाली बात यही है कि क्या खेल एक दूसरे से लड़ें या एक दूसरे से कुछ सीखें।
इस अवसर पर पूर्व टेनिस खिलाड़ी और अब खेल गुरू हिमांशु चतुर्वेदी, कुश्ती लीग की टीम हरियाणा हैमर्स के सह मालिक गोल्डी बहल, बिजनेस वल्र्ड के प्रधान संपादक अनुराग बत्रा, तुषार ढींगरा और प्रो कुश्ती लीग के सीईओ सुनील कालड़ा ने भी कहा कि खेलों में नई सोच लाने के लिये ग्रास रूट स्तर, स्कूलों और टीयर टू या टीयर थ्री के शहरों में खेलों को ले जाना जरूरी है।
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