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नई दिल्ली

अवैध खनन से बांझ होती बनास की कोख

टोंक. जिले की जीवनदायनी बनास नदी में बजरी खनन में लीज के नियमों को इस कदर दरकिनार किया गया कि सपाट दिखने वाली बनास नदी आज कई मीटर गहरी खाइयों में तब्दील हो गई है। बजरी खनन में लीज नियमों के 18 बिन्दुओं को अनदेखा किया जा

रहा है।

नई दिल्लीOct 22, 2016 / 10:00 am

pawan sharma

tonk

टोंक. जिले की जीवनदायनी बनास नदी में बजरी खनन में लीज के नियमों को इस कदर दरकिनार किया गया कि सपाट दिखने वाली बनास नदी आज कई मीटर गहरी खाइयों में तब्दील हो गई है।

टोंक. जिले से गुजर रही बनास नदी में पैदा होने वाले तरबूज व सब्जियां बनास के नाम से ही बिका करती थी।

 एक दशक में ही खननकर्ताओं में बनास नदी की सोना रूपी बजरी का बेतहाशा खनन किया गया।
 इस अंधाधुंध खनन में नियम कायदों को ताक में रख दिया गया। जिला प्रशासन भी खननकर्ताओं के आगे नतमस्तक हो गया।

 ऐसे में गांव से लेकर राजधानी ही नहीं देश भर के खननकर्ता बजरी खनन के लिए बनास नदी में कूद पड़े।
 नदी में हर दिशा में दिन रात मशीनों से खनन किया जाने लगा। इसी का नतीजा है कि आज बनास नदी छलनी हो गई है।

 सपाट दिखने वाली नदी कई मीटर गहरी खाइयों में तब्दील हो चुकी है। जबकि केन्द्र व राज्य सरकार ने खनन के नियम बना रखे हैं,
 लेकिन प्रशानिक लापरवाही के चलते यह नियम बौने साबित हो रहे हैं। इसी को लेकर पत्रिका की विशेष रिपोर्ट..

टोंक. जिले की जीवनदायनी बनास नदी में बजरी खनन में लीज के नियमों को इस कदर दरकिनार किया गया कि सपाट दिखने वाली बनास नदी आज कई मीटर गहरी खाइयों में तब्दील हो गई है।
 बजरी खनन में लीज नियमों के 18 बिन्दुओं को अनदेखा किया जा रहा है। 

जिला प्रशासन ने कभी खनन नियमों की पालना के लिए बनास नदी का दौरा तक नहीं किया।

 दो साल पहले जरूर प्रशासन ने बनास नदी में अवैध रूप से किए जा रहे बजरी खनन पर अंकुश लगाया था, लेकिन अब इन दो सालों में प्रशासन की गठित टीम एक भी बार भी बनास नदी में नहीं पहुंची।
 इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बनास नदी में बजरी खनन के नियमों की पालना किस तरह की जा रही होगी।

 नियमों के मुताबिक जो भी कार्य किए जाने थे, वो आज तक पूरे नहीं हुए और तो और बनास नदी का मुख्य नियम खनन के दौरान किए गए गड्ढे को समतल करना भी मुनासिब नहीं समझा जा रहा है। 
नियमों के विपरीत हाइवे तथा अन्य मार्गों पर बजरी का संग्रहण भी किया जा रहा है। इसके बावजूद खनिज विभाग तथा प्रशासन इस ओर आंखे मूंदे बैठा है।

यह है खनन का क्षेत्रफल
टोंक जिले से गुजर रही बनास नदी में बजरी खनन की लीज 8 हजार 837.84 हैक्टयेर में दी गई है। इसमें टोंक में 2 हजार 389.36, पीपलू में 3 हजार 342.10, देवली में एक हजार 667.78, टोडारायसिंह में एक हजार 260.96 तथा उनियारा में 177.64 हैक्टयेर क्षेत्र शामिल है।
 इसके अलावा बजरी का खनन नहीं किया जा सकता। 

यह है बनास नदी

वन की आशा के नाम से जाने वाली बनास नदी का उद्गम खमनोर की पहाडिय़ों से होता है। यहां निकलने वाली जलधारा नदी का रूप लेकर 480 किलोमीटर का सफर तय करती है।
 इसके बाद वह सवाईमाधोपुर में चम्बल में मिल जाती है। खमनोर से निकलने के बाद बनास नदी का पानी उदयपुर, नाथद्वारा, राजसंमद, चित्तौडग़ढ़, भीलवाड़ा, अजमेर होते हुए टोंक के बाद सवाईमाधोपुर पहुंचती हैं। 

यहां से वह यमुना नदी तथा यमुना से गंगा में जाकर मिल जाती है। 480 किलोमीटर के बीच करीब दो हजार 700 एनिकट बने हुए हैं।
यहां प्रतिबन्धित

नियमों के अनुसार लीज क्षेत्र के समीप 8 स्थानों पर किसी भी हालात में बजरी का खनन नहीं किया जा सकता है।

 इसमें छान से टोडारायसिंह जाने वाली सड़क पर, नदी में बनास पुल का क्षेत्रफल सेफ्टी जोन 0.6 हैक्टेयर, टोंक से मालपुरा जाने वाली सड़क पर बनास नदी में बनी रपट का सेफ्टी जोन 4.00 हैक्टेयर, टोंक व लहन गांव में जलदाय विभाग के कुओं के सेफ्टी जोन क्षेत्र 457.21 हैक्टेयर, टोंक में नदी क्षेत्र में पडऩे वाली खातेदारी भूमि 57.00 हैक्टेयर, जयपुर-कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग पर बने बनास नदी के नए व पुराने पुल के बीच तथा दोनों तरफ सेफ्टी जोन का क्षेत्रफल (1350 गुणा 800 मीटर) 108 हैक्टेयर, चूरिया गांव के खसरा नम्बर 61 में ईसरदा डेम 
का डूब क्षेत्र 133 हैक्टेयर, चूरिया तथा मण्डावर क्षेत्र में पडऩे वाली बनास नदी में 206.08 हैक्टेयर तथा टोंक में वन क्षेत्र 1143.89 हैक्टेयर क्षेत्र में बजरी का खनन प्रतिबंधित है। 

खनन एक हद तक किया जाना चाहिए है। अधिक खनन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है। लगातार किए गए खनन से वन्य जीवों पर असर पड़ा है।
 पानी का रंग व स्वाद भी बदलता जा रहा है। 

बरसात का पानी परत-दर-परत छन की जमीन की अंदर जाता है।

 खनन से परतें टूट रही है। इसके चलते पानी प्रदूषित हो रहा है। नमी की कमी होने से वनस्पती नष्ट हो रही है।
 पहले नदी किनारे हरियाली रहती थी, जो अब नष्ट हो चुकी है। नदी में पानी के साथ बहकर आने वाले तत्वों से (जलोद) कृषि उत्पादन बढ़ता था। वो भी अब नहीं आ रहा है। 
इसके चलते उपजाऊ जमीन खत्म होती जा रही है। इसका असर कृषि उत्पादन पर भी पड़ रहा है। प्रकृति का संतुलन बिगडऩे से मानव जीवन पर गहरा असर पड़ रहा है।

डॉ. रामस्वरूप मीणा भूगोल व्याख्याता राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय टोंक

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