महेंद्र सिंह धोनी ( Mahendra Singh Dhoni ) एकदिवसीय और टी-20 क्रिकेट से कब संन्यास लेंगे, यह सवाल क्रिकेट विश्व कप 2019 के दौरान और उसके बाद भी मीडिया की सुर्खियों में छाया हुआ है। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान धोनी 38 वर्ष के हो चुके हैं, लेकिन विकेट के पीछे उनकी चपलता में कोई कमी नहीं आई। उनके बल्ले से भी 2019 में काफी रन निकल चुके हैं।
महेंद्र सिंह धोनी ( Mahendra Singh Dhoni ) निर्विवाद रूप से दुनिया के सबसे सफल विकेटकीपर-बल्लबाजों में से हैं। दुनिया भर में उनके लाखों-करोड़ों प्रशंसक हैं। सफलता उनके कदम चूमती है। दरअसल उनकी जिंदगी इस बात की मिसाल है कि इन्सान में अगर किसी चीज से लिए पैशन या जबरदस्त लगन हो, तो वह उसे जरूर हासिल करता है। लाखों-करोड़ों लोग, जो जिंदगी में कुछ बड़ा हासिल करना चाहते हैं, धोनी की जिंदगी उनके लिए एक मिसाल है।
पिच पर बने रहोगे, तो रन तो बनेंगे ही महेंद्र सिंह धोनी ( Mahendra Singh Dhoni ) एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे थे। क्रिकेट में सफलता भी उन्हें थाली में परोसकर नहीं मिली। विकेटकीपिंग के दस्ताने और बैट खरीदने तक के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा था। तमाम योग्यता होने के बावजूद राष्ट्रीय टीम में उनका चयन अपने समकालीन हमउम्र खिलाड़ियों की तरह आसानी से नहीं हो सका था। लेकिन धोनी की बैटिंग और उनकी जिंदगी की फिलॉसॉफी यही है – अगर पिच पर बने रहोगे, तो रन तो बनेंगे ही। इसलिए अपना लक्ष्य हासिल करने तक मेहनत करना न छोड़ें। जब लक्ष्य हासिल हो जाए, तो अगला बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर उसके लिए मेहनत करें। लगातार मेहनत करते रहें।
Common Bowling Injuries से बार-बार चोटिल होते हैं Fast Bowlerदबाव को हावी न होने दें, सफलता के लिए प्रयास जारी रखें महेंद्र सिंह धोनी ( Mahendra Singh Dhoni ) को कैप्टन कूल भी कहा जाता है। दरअसल जब वह कप्तान थे, तो उनके चेहरे पर कभी निराशा, हताशा या मैच जीतने की अत्यधिक खुशी नहीं देखी गई। कई बड़े खिलाड़ी बड़े मैचों के प्रेशर में नाखून चबाते देखे गए, लेकिन धोनी बिल्कुल शांत नजर आते थे। दरअसल वह जानते हैं कि शांत रहने पर ही कोई व्यक्ति सही फैसले कर सकता है। दवाब में आने पर इन्सान अकसर गलत निर्णय ले लेता है। इसलिए जीवन के जिस भी क्षेत्र में हम काम कर रहे हैं, तो चुनौतियां आने पर दबाव में न आएं, बल्कि शांतचित्त से समस्याओं का हल निकालने के लिए चिंतन-मनन करें।
विपरीत परिस्थितियों में भी आशावान रहें और प्रयास जारी रखें धोनी का पूरा क्रिकेट करियर इस बात का गवाह है कि विपरीत परिस्थितियों में भी वह उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ते। मैच की अंतिम गेंद तक वह जीत के लिए कोशिश करते रहते हैं। अपनी इसी खूबी से धोनी ने सीमित ओवर्स के क्रिकेट में डेथ ओवर्स की मानसिकता को ही बदलकर रख दिया है। क्रिकेट में धोनी के आने से पहले के हालात यह थे कि मैच के अंतिम ओवर में जीतने के लिए 15 रन चाहिए, तो प्रेशर बल्लेबाज पर होता था। अब हालात ये हैं कि अगर महेंद्र सिंह धोनी ( Mahendra Singh Dhoni ) बल्लबाजी कर रहे होते हैं, तो प्रेशर गेंदबाज पर होता है।