पढ़ाई में उमेश का नहीं लगता था मन
उमेश यादव ने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए बताया कि वह बहुत खुराफाती हुआ करते थे। पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था। वह हमेशा पढ़ाई से भागते थे। अपने दोस्तों के साथ आम के बगीचे में घुस कर आम चुराया करते थे। दोस्तों के साथ आम की चोरी करते थे। हां, यह है कि क्रिकेट को लेकर उनकी दीवानगी बचपन से ही थी। थोड़ा बड़ा होने पर उनकी समझ में आ गया कि क्रिकेट के लिए उन्हें घर से पैसे नहीं मिलने वाले हैं और उन्हें खुद के लिए क्रिकेट किट खासकर बल्ला और स्पाइक्स खरीदना था। इसके लिए भयंकर धूप और भीषण गर्मी में वह एक ही दिन में तीन-तीन मैच में भाग लेते थे।
क्रिकेट छोड़ देने का मन बना लिया
उमेश यादव ने बताया कि जल्दी ही उनकी गेंदबाजी की वजह से स्थानीय क्रिकेटर्स में उनकी चर्चा होने लगी। उमेश ने बताया कि शुरुआती दिनों में ही उनके यॉर्कर की चर्चा होने लगी थी। यह सुनकर एक दिन सचिव ने उन्हें नागपुर की तरफ से जिला क्रिकेट खेलने के लिए कहा। उमेश ने बताया कि उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और पहली बार उस मैदान पर खेलते हुए आठ विकेट लिए। उनकी गेंदबाजी को देखकर लोग उन्हें 30 खिलाड़ियों के समर कैंप में डालने के लिए कहा गया। इसके बाद उनके पास समर कैंप के लिए बुलाया आया। उमेश यादव ने कहा कि मगर वह उस दिन को कभी भूल नहीं सकते। उस दिन उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि क्रिकेट खेलना छोड़ देना चाहिए। कैंप में पहुंचे तो कोच ने उनसे उनके जूते के बारे में पूछा। तुम्हारी स्पाइक्स कहां है? उन्होंने मना कर दिया। इसके बाद कोच ने कहा कि ऐसे ही आ जाते हैं लोग। पता नहीं किस-किस को कैम्प के लिए बुला लेते हैं। उस दिन उन्हें ऐसा लगा कि वह सब कुछ छोड़ दें, लेकिन उनके दोस्तों ने काफी समझा कर रोका।
रणजी में चयन को भी किया याद
इसी तरह रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) में अपने चयन को याद करते हुए बताया कि विदर्भ (Vidarbh Ranji Team) के कप्तान ने उन्हें काफी सपोर्ट किया। टीम में उनके चयन के लिए काफी संघर्ष किया, क्योंकि वह टीम में उन्हें चाहते थे। इसके बाद उनका क्रिकेट करियर शुरू हुआ।