SC: धारा 66(A) के तहत की गिरफ्तारी, आदेश देने वाले को ही होगी जेल
सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर खत्म हो चुकी सूचना प्रौद्योगिकी की धाराओं के तहत गिरफ्तारी होती है, तो यह आदेश देने वाले अधिकारियों को ही जेल में डाल दिया जाएगा।
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सरकार की आलोचना की। अदालत ने चेतावनी दी कि अगर खत्म हो चुकी सूचना प्रौद्योगिकी की धाराओं के तहत गिरफ्तारी होती है, तो यह आदेश देने वाले अधिकारियों को जेल में डाल दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट इसलिए सख्त नजर आई क्योंकि सरकार साइबर क्राइम और ई-कॉमर्स के लिए रद्द किए जा चुके सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत गिरफ्तारी नहीं रोक पा रही है। वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66(A) को रद्द कर दिया था। इस धारा के अंतर्गत तीन वर्ष के कारावास का प्रावधान है। इसके अंतर्गत उस ऑनलाइन सामग्री को यह मानते हुए कि यह प्रावधान भाषण एवं अभिव्यक्ति की संवैधानिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है, आपत्तिजनक या गलत माना जा सकता है।
अपने फैसले में अदालत ने कहा था कि यह धारा संविधान के तहत उल्लिखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को साफ तौर पर प्रभावित करती है। अपनी याचिका में पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) नामक गैर-सरकारी संगठन ने कहा कि इसके अलावा 22 से ज्यादा लोगों के खिलाफ आईटी एक्ट की धारा 66 (ए) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम कड़ी कार्रवाई करने जा रहे हैं।” सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह ‘अगर सच है तो चौंकाने’ वाला है कि लोग को ‘असंवैधानिक’ घोषित किए जा चुके इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया। न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार को इस संबंध में प्रतिक्रिया देने के लिए चार सप्ताह का वक्त दिया है।
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