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SC ने खारिज की जजों के नाम रिश्वत वाली याचिका, कहा-FIR में सीटिंग जज का नाम नहीं

कोर्ट ने कहा कि जजों के नाम पर रिश्वत देने के मामले में दर्ज एफआईआर में किसी भी सिटिंंग जज का उल्लेख नहीं किया गया है ।

नई दिल्लीNov 14, 2017 / 03:07 pm

Mohit sharma

 bribe for medical college

नई दिल्ली । मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दिलाने के लिए जजों के नाम पर रिश्वत देने के मामले की एसआईटी जांच की मांग करनेवाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कामिनी जायसवाल, प्रशात भूषण और दुष्यंत दवे द्वारा दायर ये याचिकाएं कोर्ट की अवमानना की तरह हैं लेकिन वे अवमानना की प्रक्रिया शुरु नहीं करेंगे। वे उम्मीद करते हैं कि लोगों को कुछ बुद्धि आएगी। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता फोरम शॉपिंग कर रहे थे। उन्होंने जस्टिस चेलमेश्वर की बेच के समक्ष जानबूझकर वही याचिका लगाई जो पहले से एके सिकरी की बेंच के समक्ष लगा रखी थी ।

एफआईआर पर उठाए सवाल

जस्टिस आरके अग्रवाल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि बार और बेंच आपसी सहयोग के जरिये सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था को और बेहतर बनाएंगे। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दिलाने के लिए जजों के नाम पर रिश्वत देने के मामले में दर्ज एफआईआर में किसी भी सिटिंंग जज का उल्लेख नहीं किया गया है । कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ वकीलों ने बिना तहकीकात किए ही चीफ जस्टिस पर गैरजिम्मेदार आऱोप लगाए । ऐेसे आरोपों से सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था को शक के दायरे में लाने की कोशिश की गई । कोर्ट ने तीनों वकीलों की आलोचना करते हुए कहा कि कानून के ऊपर कोई नहीं हैं चाहे वो चीफ जस्टिस ही क्यों नहीं हों । कल यानि 13 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था । कल करीब डेढ़ घंटे तक बहस हुई थी जिसमें याचिकाकर्ता कामिनी जायसवाल की ओर से वरिष्ठ वकील शांति भूषण और प्रशांत भूषण ने दलीलें दी जबकि केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलीलें रखीं ।

किसी सीटिंग जज का नाम नहीं

सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा था कि याचिका में दायर आरोप प्रथम दृष्टया न्यायपालिका की छवि को खराब करनेवाले हैं । शांति भूषण ने कहा था कि चीफ जस्टिस के खिलाफ सीधे कोई आरोप नहीं है । उन्होंने कहा था कि ये याचिका सीबीआई द्वारा दायर एफआईआर की गंभीरता को देखते हुए दायर किया गया है । एफआईआर में किसी भी सिटिंग जज का नाम नहीं है । लेकिन ये एक लंबित मामले को प्रभावित करने के लिए रिश्वत लेने का मामला है । ये एक गंभीर आरोप है । सुनवाई की शुरुआत में वकील शांति भूषण ने कहा था कि इस बेंच को सुनवाई नहीं करनी चाहिए लेकिन बेंच उनकी इस दलील से सहमत नहीं थी । अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि दोनों याचिकाओं ने संस्थान की छवि को नुकसान पहुंचाया है । उन्होंने इस नुकसान की भरपाई के लिए याचिकाओं को वापस लेने की सलाह दी थी।

क्या है मामला

आपको बता दें कि कामिनी जायसवाल की याचिका पर सुनवाई के लिए 10 नवंबर को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने तीन सदस्यीय बेंच का गठन किया था । ये तीनों ही जज उस पांच सदस्यीय बेंच के सदस्य थे जिसने जस्टिस चेलमेश्वर द्वारा 9 नवंबर को पांच सदस्यीय बेंच गठित करने के आदेश को निरस्त किया था । उस पांच सदस्यीय बेंच ने कहा था कि चीफ जस्टिस ही सुप्रीम कोर्ट के जजों के रोस्टर तय कर सकते हैं । किसी दूसरे जज द्वारा बेंच गठित करने के लिए दिया गया आदेश मान्य नहीं होगा । इस बेंच ने 9 नवबर को जस्टिस चेलमेश्वर द्वारा जजों के नाम पर रिश्वत वसूलने के मामले की सुनवाई पांच सदस्यीय संविधान बेंच को रेफर करने के आदेश को निरस्त कर दिया था । बेंच ने कहा था कि इससे अराजकता का माहौल पैदा होता है ।

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