एमपी के इस जिले में बढ़ रहा भालुओं का कुनबा
मडिय़ादो, जबेरा व तेंदूखेड़ा क्षेत्र में बढ़ रहे भालू

दमोह. भालू जिसका उपनाम रीछ है, इस वन्यप्राणी की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह परिवार में रहने वाला वन्य प्राणी मानवों पर हमला कर चर्चाओं में लगातार बन रहा है। मडिय़ादो, जबेरा व तेंदूखेड़ा क्षेत्र में भालू के हमले से कई ग्रामीणों के घायल होने के मामले सामने आ चुके हैं। ताजा मामला जबेरा के पारना के जंगल से आया था, जहां पर नर-मादा ने अपने दो बच्चों के साथ दो युवकों पर हमला कर दिया था। यह युवा जंगल में लकड़ी बीनने गए थे।
वन विभाग के प्राणी विज्ञान विशेषज्ञों की मानें तो भालू अपने परिवार के साथ शांतिमय जीवन व्यतीत करने वाला प्राणी है। मानव अपने फायदे के लिए इसके नाखूनों व बालों के लिए इसका शिकार करता रहता है, जिससे यह मानव को अपना दुश्मन समझ लेते हैं। तेंदूखेड़ा वन परिक्षेत्र में हाल ही में एक भालू मृत अवस्था में मिला था, जिसके चारों पंजे अज्ञात काट लिए गए थे, इस भालू की करंट से मौत होना बताई जा रही है। मडिय़ादो क्षेत्र में भी रीछ द्वारा हमले की बात सामने आ चुकी है। जिले के वन विभागों के बीट गार्ड की मानें तो पिछले कई सालों से जंगल में भालुओं की जनसंख्या में वृद्धि देखी जा रही है। भालु ऐसा वन्य प्राणी है जिसकी वन विभाग गणना नहीं करता है, लेकिन दमोह जिले में प्रत्येक वन परिक्षेत्र में भालुओं का रैन बसेरा बढ़़ता जा रहा है।
दखल बर्दास्त नहीं करते भालू
वन विशेषज्ञों की मानें तो भालुओं के सबसे ज्यादा हमले सामने आते हैं। जंगल में लोग जाते हैं और भालू लोगों को देखकर उन पर हमला कर देते हैं। इनकी लगातार आबादी बढऩे से ये गांवों की ओर भी आ जाते हैं, जिससे वे लोगों का शिकार भी बन जाते हैं।
सदियों से वन्य प्राणियों की स्थली है दमोह
ग्रंथों में व्याग्रमुख नदी बाघों की शरण स्थली मानी गई जो वर्तमान में व्यारमा नदी कहलाती है। इस नदी के किनारे अक्सर टाइगर रिजर्व से बाघ निकलकर विचरण करते थे, बाघों के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अपना पुर्नजन्म याद रहता है। जब यहां बाघों का बसेरा था तो उनके भोजन के लिए वन्य प्राणी भी बड़ी तादाद में थे। जिससे दमोह जिले में वन्य प्राणियों को अनुकूलता मिल रही है और वह अनुवांशिक है।
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