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दमोह

नशा मुक्त मोहल्ला देख आज भी मुस्कुरा रहे गांधीजी

86 साल पहले महात्मा गांधी ने किया था नशा मुक्त मोहल्ला

दमोहOct 01, 2019 / 10:47 pm

Rajesh Kumar Pandey

Gandhi is still smiling even today after seeing the addiction free

Gandhi is still smiling even today after seeing the addiction free

दमोह. दमोह के बाल्मीकि समाज के मोहल्ले में 86 साल पहले महात्मा गांधी पहुंचे थे। उस दौरान इस मोहल्ले में शराब खोरी के अलावा अस्वच्छता का वातावरण था, सफाई का जिम्मा संभाले बाल्मीकि समाज के लोगों में ऐसा बदलाव आया कि उनकी तीसरी व चौथी पीढ़ी भी नशाखोरी व अस्वच्छता से आज भी कोसो दूर है। इस स्थिति को देखकर यहां स्थापित गांधीजी की प्रतिमा भी अपनी इस सफलता पर मुस्कुराती हुई नजर आती है।
महात्मा गांधी 2 दिसंबर 1933 को दमोह पहुंचे थे। संतोष माता पहाड़ी के पीछे स्थित बाल्मीकि समाज के मोहल्ले पहुंचे तो उस दौरान शराब खोरी ज्यादा थी, जिससे पूरा वातावरण खराब था। इस मोहल्ले के लोग अन्य अस्वच्छ काम करते थे, जिससे पूरा वातावरण दूषित था। महात्मा गांधी इस मोहल्ले में केवल डेढ़ घंटा रुके थे, लेकिन इतने समय में ही वह ऐसा कर गए कि 86 साल बाद भी उनको दिए गए वचन का पालन इस मोहल्ले में होता हुआ नजर आ रहा है।
महात्मा गांधी ने उस दौरान बाल्मीकि समाज के लोगों को बिठाया, इसके बाद सभी नशा मुक्त, सादा जीवन जीने का संकल्प दिलाया। साथ ही इससे दूर रहने के लिए धर्म का मार्ग बताया। काफी विमर्श के बाद बाल्मीकि समाज ने कहा कि वह गुरुनानक देव के सिद्धांतों से प्रभावित हैं तब महात्मा गांधी ने दलित बस्ती में गुरुद्वारा की स्थापना अपने हाथों से रखी साथ ही उनकी ओर से हरिजन सेवा संघ द्वारा 200 रुपए की दान राशि दी गई। कुल 7 हजार रुपए में गुरुद्वारा बनकर तैयार हो गया है। इतना ही नहीं इस गुरुद्वारे में प्रदेश का सबसे बड़ा गुरु ग्रंथ साहिब भी विराजमान है। गुरुद्वारा की स्थापना के बाद बाल्मीकि समाज के लोग गांधीजी के बताए मार्ग पर गुरुनानक देव के सिद्धांतों को अपनाए हुए हैं। जिससे गुरुद्वारा वाले इस बाल्मीकि मोहल्ले में वर्तमान समय की युवा पीढ़ी भी नशा मुक्त होकर अच्छा जीवन बसर कर रही है। गुरुद्वारा के बरामदे में सफेद रंग की महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित है, जो हंसती हुई प्रतिमा है और यह प्रतिमा मानों अपनी इस सफलता पर प्रसन्नचित होने की आभा मोहल्ले में बिखेरती दिख रही है।
गुरुद्वारा के प्रमुख हरि सींग पारोचे बताते हैं कि जब महात्मा गांधी आए और उन्होंने लोगों को नशा मुक्त करते हुए एक धर्म की राह पर चलने को कहा उस दौरान हरिजन वार्ड के लोग गुरुनानक देव के सिद्दांतों को मानते थे। उनके बुजुर्गों की विरासत को बाल्मीकि समाज के लोग संभाले हुए हैं। गुरुवाणी पढऩा इस वार्ड के बच्चे भी जानते हैं। हरि सींग बताते हैं कि जब महात्मा गांधी आए थे तो वे अपनी मां की गर्भ में थे। लेकिन उन्हें आज भी महसूस होता है कि महात्मा गांधी की आत्मा यदि कहीं बसती है तो वह दमोह के इसी गुरुद्वारे में ही बसी हुई है। हरिसींग बताते है कि महात्मा गांधी जिस वार्ड में आए थे। उस वार्ड का नाम महात्मा गांधी के नाम से नहीं है। जबकि वह केवल शासन से इस वार्ड का नाम बापू वार्ड रखने की मांग लंबे समय से करते आ रहे हैं।

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