यूं ही मरते रहेंगे अभयारण्य के वन्य प्राणी
अभयारण्य के वन्य प्राणियों की सड़क हादसे में मौत का सिलसिला सड़क शुरु होने के बाद से निरंतर जारी है। इस संबंध में वन विभाग द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार अभयारण्य के भीतर से निकले22 किमी मार्ग में रोजाना ०२ वन्य प्राणी अर्थात सालाना 750 वन्य प्राणियों की हादसे में मौत हो रही है और अब तक सैकड़ों वन्यप्राणियों की सड़क दुर्घटना में मौत हो चुकी है। सर्वे की यह रिपोर्ट डीएफओ द्वारा वाइल्ड लाइफ पीसीसीएफ दिलीप कुमार के समक्ष प्रस्तुत की गई थी।
छह माह से जारी है पत्र व्यवहार
वन्य प्राणियों की मौत के हुए सर्वे के बाद उजागर हुई जांच रिपोर्ट के आधार पर वाइल्ड लाइफ पीसीसीएफ द्वारा एमपीआरडीसी को १५ दिनों का अल्टीमेटम देकर प्रावधानुसार सुधार करने के लिए कहा था। साथ ही यह हिदायत भी दी थी कि सुधार नहीं होने पर वन विभाग द्वारा कार्रवाई शुरु कर दी जाएगी। लेकिन इस अल्टीमेटम के बाद भी सुधार नहीं हुआ। उधर अधिकारियों के हुए फेरबदल के बाद पुन: एमपीआरडीसी पत्र व्यवहार शुरु हो गया। डीएफओ नवीन गर्ग ने बताया है कि उन्होंने पिछले माह एक पत्र संबंधित विभाग व कांट्रेक्टर को भेजा था। जिस पर कोई पहल नहीं करने के कारण हाल ही के दो से तीन दिनों पहले एक और रिमाइंडर भेजा गया है।
यह प्रमुख कमियां ले रहीं जान
– सड़क निर्माण के दौरान वन्यप्राणियों के लिए सड़क पार करने एक भी अंडर पास नहीं बनाया गया।
– अभयारण्य के भीतर हर 400 मीटर दूरी बनाए जाने वाले 54 स्पीड ब्रेकर की जगह 10 स्पीड ब्रेकर वन्य प्राणियों की सुरक्षा को लेकर बनाए गए वह भी अभयारण्य में बनाए जाने वाले स्पीड ब्रेकर नहीं बनाए
– हर 500 मीटर दूरी पर हार्न प्रतिबंधित क्षेत्र, एनीमल क्रासिंग, स्पीड लिमिट के संक्रेतक 86 बोर्ड लगाए जाने थे। लेकिन ऐसे संकेतक बोर्ड नहीं लगाए गए।
– पानी निकासी की पुलियों की ऊंचाई वन्य प्राणियों के हिसाब से नहीं रखीं गईं।
यह जानते ही फूल जाती हैं अधिकारियों की सांसे
एमपीआरडीसी को वन विभाग द्वारा सड़क बनाने की दी गई सशर्त अनुमति में कहा गया था कि निर्माण में वाइल्ड लाइफ की गाइड लाइन को पूरा करना होगा। लेकिन गाइड लाइन को नजरअंदाज कर निर्माण कार्य किया गया। निर्माण के दौरान जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे रहे। अब जब वन्य प्राणियों की मौत हो रही है तो पत्रों के जरिए खानापूर्ति की जा रही है। बावजूद इसके जब वन विभाग के अधिकारी यह समझ चुके हैं कि एमपीआरडीसी पत्रों के जबाव में कार्रवाई नहीं कर रही है तो ऐसे में वन अधिनियम के तहत कार्रवाई शुरु कर देना चाहिए। लेकिन यह जानकर अधिकारियों की सांसे फूल जाती हैं कि यह सड़क 220 करोड़ की लागत से बनी है। जिसका 22 किमी सड़क का टुकड़ा अभयारण्य के भीतर है। कार्रवाई की जाती है तो राजनैतिक दबाव बढ़ सकता है।