लघु व सीमांत किसान आधुनिक खेती से बन रहे हैं कर्जदार
सरकारी संसाधन कम होने से सूदखोरों के चंगुल में फंस रहे किसान
Small and marginal farmers are becoming indebted with modern farming
दमोह. दमोह जिले का किसान सदियों से कृषि कार्य के लिए किसानों को सूदखोर के दरवाजे पर पहुंचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जबसे कृषि लागत से अधिक व्यय होने लगा है, तब से किसान साल दर साल कर्ज के बोझ तले दब रहा है। जिसके कारण जिले में कई किसान आत्मघाती कदम तक उठा चुके हैं।
किसान के कल्याण के लिए भले ही केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा कई दावे किए जाते हों, सहकारी समितियों के बैंकों से लेकर सरकारी बैंकों तक किसान क्रेडिट कार्ड से ऋण की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही हो, लेकिन बुंदेलखंड क्षेत्र के किसान को किसी न किसी कारणवश सूदखोर का दरवाजा कर्ज के लिए खटखटाना पड़ता है। उसका कारण यह है कि सरकारी समर्थन मूल्य खरीदी में एक सप्ताह में राशि देने का सरकारी दावा हर खरीदी पर सुपर फ्लाफ हो रहा है। हाल ही में चना और मसूर की समर्थन मूल्य की खरीदी की गई थी। किसानों के लिए विपणन संघ ने 100 करोड़ से अधिक की राशि को-ऑपरेटिव बैंक को भेज दी। जिसके बाद बैंक ने सहकारी समितियों के लिए 40 करोड़ रुपए उपलब्ध करा दिए हैं, लेकिन अभी तक किसानों के खाते में राशि नहीं पहुंच पाई है।
जरूरत पर सरकारी मदद नहीं मिलती
पत्रिका एग्रो क्लब से जुड़े किसानों से चर्चा में यह बात सामने आई है कि चाहे समर्थन मूल्य खरीदी हो, मुआवजा राहत राशि हो किसानों को समय पर नहीं मिला है। उदाहरण के लिए हाल ही में गर्मियों में किसानों ने विवाह किए हैं, लेकिन गेहूं व चना बेचा लेकिन खातों में राशि नहीं आई। किसानों की रिश्तेदारियां भी कास्ताकरी में होती है, जिससे परिचितों से भी बगैर ब्याज का उधार नहीं मिल पाता है, मजबूरन में किसानों को साहूकारों से कर्ज उठाना पड़ा है। दमोह में वर्तमान में साहूकारी कर्ज 10 प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत ब्याज मासिक दर है। किसान सहकारी समिति व बैंकों से पहले ही कर्ज ले चुका होता है जिसके बाद ही कृषि कार्य संभव होता है। जिससे दमोह जिले के किसानों के यहां कोई भी मांगलिक या सामाजिक कार्य बगैर साहूकारी कर्ज उठाए पूरा नहीं होता है।
शोध में पाया लागत से अधिक व्यय से कर्ज
केएन कॉलेज के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. तुलसीराम दहायत ने 4 साल पहले एक शोध किया था। इनका शोध पूरे बुंदेलखंड पर था जिसमें उन्होंने पाया था जिसमें उन्होंने पाया कि 13 साल में बुंदेलखंड में 1187 किसानों द्वारा आत्महत्या कर ली गई है। उन्होंने उस दौरान 70 किसानों की जमीनी स्तर पर रिसर्च कर उनके हालात जाने थे। जिसमें उन्होंने पाया कि आधुनिक व संयंत्र से खेती में लागत अधिक बड़ी है। बड़े किसान छोटे व सीमांत किसानों का शोषण कर रहे हैं। जब छोटे किसान को ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है तो उसका किराया बढ़ा दिया जाता है, जिससे खर्च की भरपाई के लिए उसे कर्जदार बनने विवश होना पड़ता है। भले ही प्रोफेसर ने चार पहले के हालात पर सर्वे किया था, लेकिन वर्तमान समर्थन मूल्य खरीदी के दौरान भी यह बात सामने आई थी कि किसान को अपना 40 बोरी अनाज केंद्र तक लाने के लिए 1 हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से किराए पर ट्रैक्टर मिला था और पांच दिन खरीदी न होने से किसान के ऊपर 5 हजार रुपए का कर्ज बढ़ गया था।
50 हजार का 2 लाख रुपए कर्ज
2019 में पथरिया ब्लॉक के लखरौनी गांव में एक मामला सामने आया था। जिसमें लखरौनी निवासी लक्ष्मण काछी ने अपने ही रिश्तेदार सूदखोर साहूकार मलखान काछी से ब्याज पर 50 हजार रुपए कर्ज लिया था। उसने 90 हजार रुपए चुका दिए थे, लेकिन साहूकार दो लाख रुपए मांग रहा था। हर दिन तकादे व प्रताडऩा से तंग आकर जहर खा लिया था, हालांकि इस किसान को डॉक्टरों ने बचा लिय था, लेकिन सूदखोर का ब्याज किस रफ्तार से बढ़ता है। इसका खुलासा हुआ था।
कर्ज से मुक्ति के लिए ये है समाधान
केएन कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. तुलसीराम दहायत ने अपने शोध के अंत में समाधान भी दिया है। जिसमें उन्होंने कर्ज से मुक्ति व आत्महत्याएं रोकने के लिए छोटे किसानों के लिए अनुदान पर छोटे यंत्र उपलब्ध कराएं जाएं ताकि उन्हें किसी से रुपए उधार या कर्ज लेकर यंत्र न खरीदने पड़े। इसी तरह छोटे किसानों की जमीन शासन अनुबंध करके खेती के लिए ले और उसका अनुबंध करके अनाज की खरीददारी करे और उनकी जमीन का उन्हें एक निर्धारित शुल्क दिया जाए। इसके अलावा किसानों को कर्ज देकर मनमाना ब्याज और स्टांप पर लिखवाने की बातों को किसान के लिए स्पष्ट समझाईं जाएं। दलाली करने वाले सूदखारों का लाइसेंस प्रक्रिया से बनाया जाए।
बीमा कंपनी कर रही किसानों से छल
भारतीय किसान यूनियन द्वारा गुरुवार को कलेक्टर को एक ज्ञापन दिया गया है। जिसमें किसानों से बीमा कंपनी द्वारा प्रीमियम की राशि तो काट ली गई, लेकिन फसलें क्षति होने पर बीमा नहीं दिया गया है। इस तरह बीमा कंपनी द्वारा किसानों से छल किए जाने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की गई है। भारतीय किसान यूनियन के बसंत राय ने दिए गए ज्ञापन में उल्लेख किया है कि 2019-2020 में अतिवृष्टि के कारण फसलें तबाह हुईं थी। जिसका मुआवजा तो दे दिया गया है, लेकिन फसल बीमा कंपनी ने अब तक बीमा राशि का भुगतान नहीं किया गया है। जबकि बीमा कंपनी ने प्रीमियम की राशि काट ली थी। किसान यूनियन के जिलाध्या मुकेश पटेल ने बताया कि फसल नुकसानी के दौरान बीमा कंपनी के कर्मचारियों ने किसानों के खेतों पर नुकसानी का सर्वे भी किया था, लेकिन इस सबके बावजूद फसल बीमा की राशि नहीं की गई है। इस तरह जिले में बीमा कंपनियों द्वारा किसानों के साथ छल किया जा रहा है इसकी जांच कराकर इनके खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज किया जाए।