बच्चों की मदद के लिए उठने लगे हाथ
बच्चों की मदद के लिए उठने लगे हाथ
कुण्डल. ग्राम पंचायत गुढ़लिया के बास गुढ़लिया में विधाता की बदनियति के चलते उजड़े परिवार की मदद के लिए भामाशाह और समाजसेवियों के मदद के लिए हाथ उठने लगे हैं।
राजस्थान पत्रिका ने रविवार के अंक में मां ना बाप, कौन करे बेटी के पीले हाथ नामक शीर्षक से समाचार प्रकाशित कर दोनों भाई-बहिनों की व्यथा को उजागर किया था।
समाचार प्रकाशित होने के बाद से ही भिक्षा के सहारे जीवन यापन करने वाले भाई-बहिनों की मदद के लिए भामाशाह और समाजसेवी पहुंचकर आटा मांगकर बमुश्किल दो जून की रोटी का जुगाड़ करने वाले दोनों बच्चों को अच्छे भविष्य का सपना दिखाई देते दिखे। सर्वप्रथम पत्रिका में प्रकाशित खबर को पढ़कर भामाशाह जगमोहन भाटिया से रहा न गया और वे अलसुबह ही राशन की दुकान पर पहुंचकर एक माह का राशन खरीदकर बेसहारा हुए बच्चों के पास पहुंचकर राशन सामग्री और कपड़े व जरूररतमंद सामग्री खरीदने के लिए 21 सौ रुपए की आर्थिक मदद की। साथ ही बेटी की शादी में भी आर्थिक सहायता देने की बात कही। ब्रजवासी डेयरी बांदीकुई के संचालक विजेन्द्र मीना, पंचायत समिति सदस्य दौलतराम मीना, एडवोकेट राधाकिशन मीना, भागचन्द मीना, गोल्याराम मीना, रणवीर सिंह गुर्जर, कल्याण सिंह, महेश शर्मा, पूर्व उपसरपंच कमल सिंह राजपूत, बंजीत सिंह, मोहरसिंह गुर्जर भी मदद के लिए पहुंचे। विजेन्द्र मीना ने राशन सामग्री में आटा, दाल, चावल, चाय, चीनी, सोयाबीन, तेल, नमक, मिर्च, गरम मसाला सहित कपड़े सहित अन्य सामान दिया। साथ ही बेसहारा बच्चों को 11 हजार रुपए की नकद आर्थिक सहायता देकर शादी में भी मदद करने का आश्वासन दिया।
गौरतलब है कि बेसहारा हुए दोनों बच्चों के मां और बाप छोटी ही उम्र में एक के बाद एक टीबी (क्षय) नामक बीमारी का शिकार हो गए थे। उसके बाद ही दोनों बच्चे एक-दूसरे का सहारा बने हुए थे। 14 वर्षीय पवन योगी प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर गांव में भिक्षाटन करने जाता है और भिक्षा में मिले आटे से दोनों समय की रोटी पकाकर अपना पेट भरते हैं। दोनों ही बच्चों ने मां-बांप को मरने के बाद तो सब्जी तो कभी देखी ही नहीं। सूखी रोटी पर नमक-मिर्च डालकर विधाता को कोसते हुए अपना पेट भरने को मजबूर है।
पीडि़त के एक किडनी वाले चाचा ने बताया कि गांव में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने के बाद शोक के चलते भिक्षाटन नहीं कर पाने के कारण दोनों बच्चों को अपनी भूख दिनभर पानी पीकर ही मिटानी पड़ती है। ऐसे में दोनों बच्चे अपनी बदकिस्मत और विधाता के लेखों को कोसते रहते हैं। यहीं नहीं बदकिस्मती बच्चों के पास सिर छिपाने के लिए अपना घर तक नहीं है। ऐसे में चरागाह में एक क्षतिग्रस्त पाटरपोश में रहकर सर्दी-गर्मी और बरसात के टपकते मौसम रहने को मजबूर हैं।
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