इन दिनों होमगार्ड रात्रि गश्त, यातायात व्यवस्था, आबकारी, दूर संचार निगम, एफसीआई गोदाम सहित अन्य कार्यालयों में डयूटी दे रहे हैं। इसके अलावा इन होमगार्डो की चुनावों में भी डयूटी लगाई जाती है। राज्य के अलावा पंजाब एवं मध्यप्रदेश भी होमगार्डो को चुनाव में सुरक्षा व्यवस्था के लिए भेजा गया, लेकिन अब होमगार्डो की आस टूटती जा रही है। जबकि होमगार्डो की भर्ती में भी दौड़, मेडिकल एवं शिक्षा सहित अन्य मापदण्ड तय किए हुए हैं, लेकिन स्थाईकरण नहीं होने से मायूस होने लगे हैं।
यदि किसी होमगार्ड के साथ कोई घटना हो जाए तो सरकार आर्थिक सहयोग के नाम पर हाथ खींच लेती है। गत वर्ष होमगार्ड कन्हैयालाल की हार्ट अटैक से मौत हो गई, लेकिन उसके परिवार को सरकार की ओर से कोई आर्थिक सहयोग भी नहीं दिया गया। इससे अब होमगार्ड असुरक्षित भी महसूस करने लगे हैं। जबकि होमगार्ड की डयूटी भी पुलिस की तरह होती है। अब उसका परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा है।
होमगार्ड कल्याणसहाय शर्मा ने बताया कि गत 1999 में होमगार्ड में भर्ती हुआ। बीस वर्ष से स्थाई होने की उम्मीद बंधी थी, लेकिन लम्बे समय तक सरकार ने ध्यान नहीं दिया। तो आर्थिक तंगी से जूझने लगे। क्योंकि वर्ष में मात्र तीन माह रोजगार मिलता है। जो कि ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है। पांच बेटियां हैं। उनकी पढ़ाई एवं शादी सहित अन्य जिम्मेदारियां भी हैं। ऐसे में घर के पालन पोषण के लिए न्यायालय के बाहर चाय की थड़ी लगाकर घर का संचालन करना पड़ रहा है।
डयूटी के तीन माह बाद भी नहीं मिला वेतन
होमगार्ड दिनेश कुमार कन्नौजियां ने बताया कि वह बीस वर्ष से होमगार्ड की डयूटी कर रहा है। गत नवम्बर 2018 तक आबकारी विभाग में डयूटी की। जिसका तीन माह बीत जाने के बाद भी मेहनताना नहीं मिला है। जबकि पुलिस की तरह ही बखूबी डयूटी करते हैं। मजबूरन कपड़ों की प्रेस करके परिवार का संचालन करना पड़ रहा है। पत्नी सिलाई-बुनाई करके सहयोग देती है। प्रशासन जरूरत पडऩे पर तत्काल डयूटी पर बुला लेता है। जान जोखिम में डालकर नौकरी करते हैं, लेकिन उनका कोई धणीधोरी नहीं है।
मोटर बांधकर कर रहा हूं गुजारा
होमगार्ड कंपनी कमाण्डर दिनेशचंद सैनी ने बताया कि रोस्टर प्रणाली से डयूटी पर लगाया जाता है। ऐसे में डयूटी करने के बाद 9 महिने ठाले रहते हैं। घर खर्च कैसे चले इसके लिए बिजली की मोटर बांधना शुरू कर दिया है। इससे दो सौ से तीन सौ रुपए प्रति दिन आय हो जाती है। इससे गुजारा-बसर कर रहे हैं। परिवार जन सब्जी एवं खेती बाड़ी करते हैं। इससे कुछ सहारा मिल जाता है। जबकि अन्य राज्यों में होमगार्डो को स्थाई किया हुआ है, लेकिन राजस्थान में अनदेखी की जा रही है।