इस महिला ने एक भैंस से पशुपालन का कार्य शुरू किया जो अब करीब 8 से 10 भैंस रखती हैं। दूध बेचकर घर का संचालन कर रही है। हालांकि आय बढऩे के साथ ही महिला की सोच भी बदलती गई और अब अगरबत्ती का कारोबार शुरू कर दिया। इससे प्रतिमाह 35 से 40 हजार रुपए माह कमाने लगी है। आस-पास के गांव की महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्त्रौत बनती जा रही है। हालांकि अब अगरबत्ती का कारोबार भी सफल होने पर व्यवसाय को भी बढ़ावा दे रही है।
रेशमा देवी ने बताया कि सुबह 4 बजे उठकर पहले मवेशियों का दूध निकालती है। इसके बाद घर की सफाई एवं मवेशियों को चारा पानी की व्यवस्था करती है। इसके बाद घर का खाना बनाने के साथ ही बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजती है। इसके बाद फिर अगरबत्ती के कारोबार में जुट जाती है। फिर शाम होते ही मवेशियों की सार-संभाल में लग जाती है। हालांकि इस सफलता में उसके पति श्रीमोहन मीणा की भी अहम भूमिका है। पति भी दसवीं पास है।
कच्चा माल लेकर तैयार करती है अगरबत्ती रेशमा देवी ने बताया कि उसके पति ने मोबाइल पर सर्च कर अगरबत्ती के कारोबार से जुड़ी जानकारी हासिल की। इसके बाद गुजरात से करीब दो लाख रुपए की मशीन खरीदकर लाए। इसके अलावा अगरबत्ती सूखाने का ड्राइवर (एडजेस्ट) भी खरीदा। उन्होंने बताया कि
जयपुर की एक कंपनी उन्हें कच्चा माल लाकर देती है। जिसे तैयार करके उसकी कंपनी को सप्लाई करते हैं। इसमें करीब 15 रुपए किलोग्राम के हिसाब से बचत होती है।
एक दिन में करीब एक क्विंटल अगरबत्ती तैयार हो जाती है। उन्होंने बताया कि अगरबत्ती बनाने में कोयला, लकड़ी का बुरादा, ग्वार पाठा उपयोग में लिया जाता है। इसके अलावा बांस की सीकें उपयोग में आती हैं। उन्होंने बताया कि अब अगरबत्ती के ऑर्डर इतने अधिक आने लग गए कि सप्लाई भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं। अब एक मशीन ओर लाने की तैयारी की जा रही है।
गांव की महिलाओं को भी कर रही है प्रेरित
रेशमा ने बताया कि अब वह गांव की अन्य महिलाओं को भी कुटीर उद्योग लगाकर व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रेरित कर रही है। उन्होंने बताया कि आस-पास के गांवों की महिलाएं भी उनके घर आकर पशुपालन एवं अगरबत्ती का कारोबार की जानकारी ले चुकी हैं।
उन्होंने बताया कि उनका मुख्य उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की महिलाओं को कुटीर उद्योग के जरिए स्वरोजगार की ओर उन्मुख करना है। इससे वे अपने घर का संचालन ठीक तरीके से कर से।
जैविक खेती को भी दे रही है बढ़ावा
रेशमा देवी ने बताया कि केचुंआ प्लांट भी लगा रखा है। ऐसे में मवेशियों के लिए जैविक खाद से ही हरा चारा तैयार करती है। वहीं घर के सब्जी तैयार करती है। पशुपालन एवं अगरबत्ती के व्यवसाय में जुटी रहने के साथ ही पति के साथ कृषि कार्य में भी पीछे नहीं है।
हालांकि इतना कुछ होने के बाद भी आज तक किसी भी सरकारी नुमांइदे ने मौके पर जाकर महिला को बढ़ावा नहीं दिया है और ना ही सरकार की ओर से कोई अनुदान मिला है। हालांकि कई बार कृषि विभाग एवं उद्योग विभाग के अधिकारियों से उसकी ओर से स्थापित किए गए उद्योग, पशुपालन एवं कृषि का अवलोकन करने की मांग कर चुकी है।