खाई फैसिंग में बाडबंदी के लिए बोया था
सेवानिवृत फोरेस्टर दीनबंधु शर्मा ने बताया कि वन विभाग की ओर से पहले खाई फैसिंग में बाड़ाबंदी(सुरक्षा दीवार) के रूप में बीज फैलाया गया था, लेकिन अब विलायती बबूल लगातार फैलता जा रहा है। जूली फ्लोरा (विलायती बबूल) ज्यादा ऊंचा नहीं बढ़ता है। जमीनी स्तर पर ही फैलता है। यह पेड़ अन्य पौधों को विकसित नहीं होने देता है। इससे वन क्षेत्र में हरियाली खत्म होने के साथ ही घास व अन्य पौधे विकसित नहीं हो पाते हैं। इसमें कांटे भी उगते हैं। इससे ये कांटे वन्य जीवों के चुब जाने से खतरा मंडराए रहता है। क्षेत्र में कुछ जगहों पर तो चारागाह भूमि में भी पैर पसार लिए हैं। इससे मवेशियों के लिए भी चारे का संकट पैदा हो गया है। हालांकि 10 साल से फैसिंग के रूप में विलायती बबूल का बीज फैलाना बंद कर दिया है।
काटने पर ज्यादा बढ़ता है
एडवोकेट गिर्राजसिंह पोषवाल का कहना है कि क्षेत्र में विलायती बबूल को ग्रामीण ईंधन के रूप में काम लेते हैं। प्रतिवर्ष इन विलायती बबूलों को काटकर सूखा देते हैं। फिर घरों में जलाने में काम लेते हैं, लेकिन काटने पर यह बबूल तेजी से बढ़ता है। इसको पानी की भी कम जरुरत होती है। इससे रोक पाना मुश्किल है। इस बबूल के उगने व कांटे होने से वन्य जीव व मवेशियों विचरण करने में भी परेशानी होती है।
सरकार के स्तर पर बनेगी नीति
क्षेत्रीय वन अधिकारी वीके शर्मा ने बताया कि उपखण्ड क्षेत्र में विलायती बबूल की मात्रा कुल वन क्षेत्र का करीब 35 फीसदी तक पहुंच गई है। करीब 6 माह पहले विलायती बबूल से जुड़े प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेज दिया गया है। सरकार के स्तर पर विलायती बबूल को लेकर नीति तैयार की जाएगी। इसके बाद जो भी आदेश मिलेंगे। उसके मुताबिक काम किया जाएगा। क्योंकि विलायती बबूल काटने के बाद ज्यादा बढ़ता है।