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दौसा

चरागाह भूमि में भी फैलने लगा है जूली फ्लोरा

Julie Flora vilayati babool is also spreading in pasture land: वन क्षेत्र की सुरक्षा के लिए खाई फैसिंग कर फैलाया था बीज, अब अन्य प्रजाति के पौधे भी होने लगे हैं विलायती बबूल के बढऩे से नष्ट

दौसाDec 30, 2019 / 08:49 am

gaurav khandelwal

चरागाह भूमि में भी फैलने लगा है जूली फ्लोरा

चरागाह भूमि में भी फैलने लगा है जूली फ्लोरा

बांदीकुई. उपखण्ड क्षेत्र में हरियाली के नाम पर कंटीली विषझाड़ विलायती बबूल (जूलीफ्लोरा) वन एवं चारागाह क्षेत्र में फैल चुका है। इससे प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव-जंतुओं की सैकड़ों प्रजातियां तक नष्ट हो चुकी हैं, लेकिन वन विभाग प्रशासन विलायती बबूल को उगने से रोकने में कामयाब नहीं हो पा रहा है। हालांकि क्षेत्र अकालग्रस्त होने पर वन विभाग की ओर से फैसिंग कराकर बीज फैलाया गया था। कांटेदार व जमीन में फैलने वाला पेड़ होने के कारण वन क्षेत्र की सुरक्षा के तौर पर इसे बढ़ावा दिया गया था, लेकिन विलायती बबूल अब प्रचुर मात्रा में फैलने से नासूर बनता जा रहा है।
Julie Flora vilayati babool is also spreading in pasture land

सूत्रों के मुताबिक वन विभाग की ओर से करीब 15 से 20 वर्ष पहले जब अकाल घोषित किया गया था। तब वन क्षेत्र को हरियाली युक्त बनाए रखने के लिए विलायती बबूल का बीज डाला गया था। अब यह विलायती बबूल पहाड़ी की तलहटियों तक में फैल चुका है। इससे वन्य जीवों की सुरक्षा को लेकर भी खतरा मंडरा रहा है। बसवा तहसील क्षेत्र के अधीन करीब 6502.14 हैक्टेयर वन क्षेत्र हैं। इसमें से करीब 2 हजार से अधिक हैक्टयेर में विलायती बबूल उगा हुआ है।
इसमें भाण्डेड़ा वन क्षेत्र, बसवा, झाझीरामपुरा, गुढ़ाकटला, रेहडिय़ा, चांदेरा, मुही, जयपुरा, गिरधरपुरा, कालेड़, पाड़ला, गुल्लाना, ऐंचेड़ी, रामाबास सहित अधिकांश क्षेत्र में विलायती बबूल पैर पसार चुका है। इस बबूल के उगने के बाद आस-पास अन्य कोई दूसरे पौधे विकसित नहीं होते हैं। हालांकि वन विभाग की ओर से देशी बबूल, ऐडू, नीम, खैरी, पापड के पौधे भी लगाए गए, लेकिन ये पौधे जूली फ्लोरा के चलते नष्ट हो गए। जूली फ्लोरा से घास एवं अन्य वनस्पतियां भी खत्म हो चुकी हैं।

खाई फैसिंग में बाडबंदी के लिए बोया था


सेवानिवृत फोरेस्टर दीनबंधु शर्मा ने बताया कि वन विभाग की ओर से पहले खाई फैसिंग में बाड़ाबंदी(सुरक्षा दीवार) के रूप में बीज फैलाया गया था, लेकिन अब विलायती बबूल लगातार फैलता जा रहा है। जूली फ्लोरा (विलायती बबूल) ज्यादा ऊंचा नहीं बढ़ता है। जमीनी स्तर पर ही फैलता है। यह पेड़ अन्य पौधों को विकसित नहीं होने देता है। इससे वन क्षेत्र में हरियाली खत्म होने के साथ ही घास व अन्य पौधे विकसित नहीं हो पाते हैं। इसमें कांटे भी उगते हैं। इससे ये कांटे वन्य जीवों के चुब जाने से खतरा मंडराए रहता है। क्षेत्र में कुछ जगहों पर तो चारागाह भूमि में भी पैर पसार लिए हैं। इससे मवेशियों के लिए भी चारे का संकट पैदा हो गया है। हालांकि 10 साल से फैसिंग के रूप में विलायती बबूल का बीज फैलाना बंद कर दिया है।

काटने पर ज्यादा बढ़ता है


एडवोकेट गिर्राजसिंह पोषवाल का कहना है कि क्षेत्र में विलायती बबूल को ग्रामीण ईंधन के रूप में काम लेते हैं। प्रतिवर्ष इन विलायती बबूलों को काटकर सूखा देते हैं। फिर घरों में जलाने में काम लेते हैं, लेकिन काटने पर यह बबूल तेजी से बढ़ता है। इसको पानी की भी कम जरुरत होती है। इससे रोक पाना मुश्किल है। इस बबूल के उगने व कांटे होने से वन्य जीव व मवेशियों विचरण करने में भी परेशानी होती है।
गुढ़ाकटला से नारायणीधाम जाने वाले मार्ग व बांदीकुई -बसवा वाया गुल्लाना मार्ग पर सड़क के दोनों ओर विलायती बबूल प्रचूर मात्रा में उग रहा है। इन बबूलों की टहनियां सड़क पर तक आ जाती हैं। इससे लोगों को आवागमन में तक परेशानी होती है। कई बार तो लोग टहनियों से बचने की कोशिश करने पर अनियंत्रित होकर दुर्घटनाग्रस्त तक हो चुके हैं। घुमाव पर सामने से वाहन तक दिखाई नहीं देते हैं। यह पौधा आस-पास किसी अन्य पौधे को विकसित नहीं होने देते हैं। मृदा की जैविकता को भी खत्म कर देती है।

सरकार के स्तर पर बनेगी नीति


क्षेत्रीय वन अधिकारी वीके शर्मा ने बताया कि उपखण्ड क्षेत्र में विलायती बबूल की मात्रा कुल वन क्षेत्र का करीब 35 फीसदी तक पहुंच गई है। करीब 6 माह पहले विलायती बबूल से जुड़े प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेज दिया गया है। सरकार के स्तर पर विलायती बबूल को लेकर नीति तैयार की जाएगी। इसके बाद जो भी आदेश मिलेंगे। उसके मुताबिक काम किया जाएगा। क्योंकि विलायती बबूल काटने के बाद ज्यादा बढ़ता है।
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