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फिर से बीमार पड़ा वरुणावत पर्वत,टपक रहे हैं बोल्डर

वरुणावत पर्वत के ट्रीटमेंट की खासियत यह है कि इसके इलाज की पद्धति को देखने के लिए ट्रेनी भू वैज्ञानिक भी यहां आते हैं...

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varunavat parvat

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(पत्रिका ब्यूरो,देहरादून): वरुणावत पर्वत का ट्रीटमेंट काफी लंबे समय से चल रहा है। पिछले चार साल से ऐसा लग रहा था कि अब वरुणावत पर्वत पूरी तरह से स्वस्थ्य हो चुका है। हालांकि भूगर्भीय वैज्ञानिकों ने हर साल वरुणावत पर्वत के स्वास्थ्य परीक्षण की पहल सरकार से की है लेकिन माना जा रहा है कि पिछले दो साल से सरकार ने वरुणावत पर्वत की समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। अब एकाएक पर्वत से बोल्डर गिरने शुरू हुए हैं, तो सरकार की नींद खुली है हालांकि आपदा प्रबंधन के वरिष्ठ अधिकारी इस बारे में गोलमोल जवाब दे रहे हैं।


सच्चाई तो यह है कि अभी पूरी तरह से वरुणावत का ट्रीटमेंट नहीं हो पाया है। एक फेज का ट्रीटमेंट होना बाकी है, जो धन और अधिकारियों की लापरवाही की वजह से नहीं हो पाया। सूत्रों के मुताबिक वरुणावत पर्वत स्थित तम्बा खाणी अंचल का ट्रीटमेंट बाकी है। यह दूसरे चरण में होना है। शेष ट्रीटमेंट काफी पहले ही हो चुका है।

सूत्रों के मुताबिक बोल्डर गिरने की घटना को भी भू वैज्ञानिक इससे ही जोडक़र देख रहे हैं।दरअसल वरुणावत पर्वत विश्व का एक ऐसा पर्वत है, जिसके ट्रीटमेंट पर काफी मोटी राशि खर्च की गई है। शुरूआती दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वरुणावत पर्वत के ट्रीटमेंट के लिए 282 करोड़ की राशि मंजूर की थी।


इसके तीन साल बाद ही 160 से 170 करोड़ की राशि वरुणावत के ट्रीटमेंट पर अलग से खर्च हुई है। इसके अलावा सडक़ों के निर्माण पर भी करोड़ों की राशि खर्च हुई है। सूत्रों के मुताबिक तम्बाखाणी अंचल का ट्रीटमेंट दो साल पहले ही शुरू हो जाना था लेकिन नहीं हो पाया। अब बोल्डर गिरने की घटना से आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन विभाग में हडक़ंप मचा हुआ है। विभाग का कहना है कि जहां बोल्डर गिरे हैं वहां के रूट को बंद कर दिया गया है। वैकल्पिक मार्ग के सहारे आवागमन जारी है। इसके अलावा वरुणावत पर्वत के नीचले हिस्से में स्थित घरों में रहने वाले लोगों को अन्यत्र शिफ्ट कर दिया गया है। इसके अलावा आपदा प्रबंधन विभाग की टीम वरुणावत पर नजर रखे हुए है।


वरुणावत पर्वत के ट्रीटमेंट की खासियत यह है कि इसके इलाज की पद्धति को देखने के लिए ट्रेनी भू वैज्ञानिक भी यहां आते हैं। साथ ही ट्रीटमेंट के उपयोग में आए बोल्डरों का परीक्षण करते हैं। बताते हैं कि जिन बोल्डरों का प्रयोग यहां किया गया है वे काफी सशक्त और पूरी तरह से भारतीय हैं। इसलिए विदेशी वैज्ञानिक भी इस ट्रीटमेंट को देखने के लिए पहुंचते रहते हैं।

सूत्रों के मुताबिक तम्बाखाणी का ट्रीटमेंट पहले कर दिया गया होता तो संभवत: बोल्डरों के टपकने की घटना नहीं हुई होती। विभागीय अधिकारी राहुल जुगरान का मानना है कि फिलहाल सुरक्षा के लिहाज वहां पर आवागमन को बंद कर दिया गया है। साथ वहां पर आपदा प्रबंधन की टीम नजर रखे हुए है। जुगरान का कहना है कि वरुणावत पर्वत का ट्रीटमेंट जारी है। वहीं आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के अधिशासी निदेशक डा.पीयूष रौतेला यह मानते हैं कि तम्बाखाणी का ट्रीटमेंट होना बाकी रह गया था। शेष सभी ट्रीटमेंट के फेज पूरे कर लिए गए थे। डा.रौतेला के मुताबिक तम्बाखाणी में कार्य शुरू कराने के लिए टेंडर भी निकाला जा चुका है और जल्द ही वरुणावत पर्वत के उस भाग का इलाज शुरू कर दिया जाएगा जहां नहीं हो पाया है।